
शीर्षक: अपनेपन का ढोंग
जब प्राण पखेरु उड़ गया,
तब तुमने एक दिया जलाया।
जीवन भर दुःख का अंधेरा दिया,
अब इस उजाले का ढोंग किया।।
जब प्राण पखेरु उड़ गया,
तब तुमने पास बैठ सहारा दिया।
जीवन भर बेसहारा कर दिया
अब अपनेपन का ढोंग किया।।
जब प्राण पखेरु उड़ गया,
तब तुमने नया कपड़ा पहनाया।
जीवन भर फटेहाल गुजर गया,
अब रिवाज का ढोंग किया।।
जब प्राण पखेरु उड़ गया,
तब तुमने समय पर कौल दिया।
जीवन भर गुस्सा कर अन्न दिया,
अब कौआ आव का ढोंग किया।।
जब प्राण पखेरू उड़ गया,
तब खबर लगते ही तु आया।
आँखें पथराई जब तक कंठ प्राण आया,
अब तस्वीर की माला पूजा का ढोंग किया।।।
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Photo by Eyasu Etsub on Unsplash
Bahut सटीक रचना 👌👌💐💐