
कब सोचा था जिंदगी इतनी थम जायेगी
न ऑफीस होगा, न बाजार होगा
दिन रात बस घर में, मैं और मेरा परिवार होगा
कब सोचा था मानव इतना लाचार होगा
न अपनों से मेल, न दोस्तों से मुलाकात
सुबह-शाम बस:-रामायण, महाभारत व समाचार का आधार होगा
कब सोचा था गाँव-शहर , मोहल्ला इतना सुनसान होगा
न शादी विवाह के पकवान, न पार्टियों कि धूम
दोपहर-शाम सिर्फ:- दाल, रोटी व अचार होगा
कब सोचा था बस सिर्फ पक्षियों कि चिल-चिलाहट व उनका राग-दरबार होगा
मत घबराओ दोस्तों : शासन प्रशासन ,डाक्टर, पुलिस है न
यह सोच लो जल्द हि कोरोना महामारी का अंत व
पुन: देश में खुशहाली का त्योहार होगा
Photo by Erik Mclean on Unsplash
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