
हर पन्ने में छुपा कर रखती है राज ,
सिलसिलेवार पढ़ने पर खुलते नजर आते हैं।
उसकी वो सौंधी सौंधी महक ,
हृदय को प्रफुल्लित कर जाती है।
हाथों में उसका वो सुखद स्पर्श,
मन के तारों को झंकृत कर जाता है।
उसके वो कुछ शब्द जो लगे मुझे मेरे अपने,
कलम से चिंहित कर देती मैं।
माँ की लोरियों सी प्रसन्न कर जाती है,
थपकी देकर गहरी ,मीठी नींद सुलाती है ।
पढ़ते -पढ़ते उसके संसार में खो जाती हूँ,
कभी रानी कभी मन की स्वामिनी बन जाती हूँ।
पढ़ाई, कढ़ाई, बुनाई चाहे हो रसोई ,
सभी कलाओं में परिपूर्ण बना देती है।
जब तक मैं ना पलट दूँ पन्ना,
मेरे इंतजार में ठहरी नजर आती है।
ना इंटरनेट ना ही अधिक सुविधा माँगती है,
हाथों में थामकर पढ़ने की ललक चाहती है।
जब भी मन बिखरे समेट लेती हैं किताब
ना दफन करो उसे खुलकर साँस लेना चाहती है किताब