सूरज दादा

कोजागिरी का दिन आया।
गहमा-गहमी लगी हुई थी।।

सभी शाम की बाट जोहते।
नर-नारी सब चहक रहे थे।।

सूरज दादा समझ ना पाये।
किसकी राह निहार रहे सब।।

मेरे सिवा भी इस दुनियां में।
कोई बलशाली हो सकता है।।

मैं भी तो देखूँ हर कोईं।
किसकी बाट निहार रहा है।।

जाते जाते सूरज दादा ने।
देखी एक कमाल की बात।।

शाम हुई,और सज गई घर घर।
दुघ कढ़ाई, पूजन थाल।।

जैसे ही चंदा ने झाँका।
सभी भक्तजन हुये निहाल।।

दूध सकोरे,हाथ आरती।
जयकारे से गूँजा पंडाल।।

सूरज दादा देख रहे थे।
विस्मय होकर परख रहे थे।।

अपने भीतर झाँक रहे थे।
अपनी कमियाँ आँक रहे थे।।

मैंने ज्यादा तपा दिया है।
इन लोगों को थका दिया है।।

इतना गरम मिजाज भी होना।
मेरे भीतर अब ठीक नहीं।।

अब मैं भी ठंडक चंदा सी।
लाऊंगा अपने भीतर।

भोर हुई तो अब मेरी भी,
राह तकेंगे रोज सुबह।

नाकोई मुझसे भाग रहा ना अब।
ना देख कोई घबरा ही रहा।।

सांझ न होने पाये जल्दी।
सब के दिल में चाह यही।।

बच्चे बूढे यही चाहते।
मैं रहूँ उन्ही के साथ सदा।।

समझ गये है सूरज दादा भी।
ज्यादा तेवर ठीक नहीं।।

इन्हीं गुणों के चलते दादा।
सब सिर आँखों पर बैठाएंगे।।

मकर संक्रांति के दिन दादा।
आप भी पूजे जायेंगे।।

शब्दबोध- तीज त्यौहार

Image by István Mihály from Pixabay

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About प्रभा शुक्ला 12 Articles
श्रीमती प्रभा शुक्ला , खरगोन , मध्य प्रदेश मैं एक गृहणी हूँ ,बचपन से ही पढ़ना और गीत सुनना मेरा शौक में शामिल रहा है अच्छे साहित्य में रूचि है , कहानी और कवितायेँ लिखती हूँ
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