
शीर्षक: गुड़िया की शादी
क ख ग घ नाच रहे है
झ झाड़ी में उलझ गया है,
अ ब स को कौन बुलाये,,,
ढ से ढोल को कोई समझाओ
ग से गान बिना ही बजता,,,
म से मोटर गाड़ी आई
स से सेहरा गुम ही गया है,,,,
द से दरवाजे पर आई,,,
इस बरात का क्या ही कहना,,,,
ल से लड्डू गुड्डा खाये
गुड़िया रानी है उपास पर
खलल बलल सब हुए घराती,,,,,
वर माला गुड़िया जब लाई,,,,
सब की चिंता सर माथे पर,,,,
कोई बराती रूठ न जाये,,,,,,
खुशबू नए नए व्यंजन की,,,,,,
घूँघट में गुड़िया को आती,,,,,,,
तभी सखी चुपके से आई,,,,
बिंदी ठीक करन के बहाने,,,,,
एक हाथ घूँघट में आया,,,,,
उसमे मोतीचूर का लड्डू,,,,,,
छुपम छुपाई खेल रहा था,,,,,
अब गुड़िया का पेट भरा था,,,,,,
सखी काम ऐसे आती है,,,,,
गुड़िया नाचे गुड्डा नाचे
आसमान से फूल बरसते,,,,
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बहुत सुन्दर कविता