
जीवन बना एक बंगला,
साँचे में ढाल, चित्त चेतना
सद्कर्म लगा कर लोहा,
राम-नाम, सजाया जंगला।
सत की ईट, ज्ञान की रेती,
घोल प्रेम सीमेंट है लगाई,
हरि नाम बनाई करनी,
इंगला, पिंगला की गेंती।
सुमरिन की करी तराई,
भजनों से दीवार बनाई,
मालाजप के बने दरवाजे,
ध्यान ज्ञान छत ये छवाई।
नेकी केसर की है पुताई,
दीपमाला मन की सजाई,
गुरु नाम का तोरण बाँधा,
आनंद से मूरत सजाई।
कंचन रूपा का परकोटा,
मनोरंग से डाली रंगोली
देह की आरती सजाकर,
ब्रम्ह नाद से लौ लगाई।
जीवन बना एक बंगला !
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बहुत सुंदर