
मानव मत भूल तू है प्रकृति का अंग,
सीख ले प्रकृति संग जीवन के ढंग।
सीख परोपकार के ढंग
धरा से सीख सहनशीलता,
आकाश से ले सीख हृदय की विशालता,
नदियों से ले सीख नित प्रवाह मय जीवन तेरा
निर्मल जल से सींचती
धरती को धानी चूनर पहना कर सबके जीवन सींचती।
तरु ,लता से सीख ले
सबको भोजन, आश्रय ,छाया देकर भी प्रेम से गले लगाय।
हवा बहकर घुल जा साँसों मे सबकी नव जीवन सँवार दे।
सूरज चाँद से सीख ले
दिन रैन के बाद फिर नयी भोर ।
सदा ही देती प्रकृति हमें
नहीं कभी जताती अहसान,
स्वस्थ सुखी जीवन की जो अब भी तुझको हैं चाह ,
प्रकृति संरक्षण कर अपना कर अमूल्य योगदान।
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