
एक लौ,
दूसरी लौ को रोशन गई…..
एक लौ,
दूसरी लौ को रोशन गई…..
वो बुझी,
वो बुझी,,, और उसको रोशन कर गई।
ये त्याग देख कर भी कोई समझ न पाए,
ये त्याग देख कर भी,
कोई समझ न पाए…..
जो छोटी सी हो कर भी,
पूरा घर भर गई,
जो छोटी सी होकर भी पूरा घर भर गई।
एक लौ,
दूसरी लौ को रोशन कर गई।
कुछ कर गई ऐसा,
कुछ कर गई ऐसा,,,
चार दीवारों को भी रंगो से भर गई।
बन कर उड़ गई वो धुआं,
बन कर,,,उड़ गई वो धुआं…..
उसकी चमक ने मेरी आंखों को तो छुआ।
उसकी एक चमक,
उसकी एक चमक,,, मेरे होठों को मुस्कान से भर गई।
एक लौ,
दूसरी लौ को रोशन कर गई।
बुझते ही वो एक सीख दे गई!
“जल कर तुझे भी बुझाना है ज्यादा मत इतरा,
वक्त–वक्त पर ही जलना है”
जल कर वो भी बोली!
“ये रीत तो सबको निभानी है फिर किस बात की परेशानी है।”
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