नन्हीं सी कली

नन्ही सी कली

वह नन्हीं सी कली
शाख़ पर बैठी।
मुझे देख धीरे से
शर्माई, मुस्काई।

कांटों की गोद में
अस्तित्व अपना बचाती।
एक दिन अचानक
जोर से खिलखिलाई।

फूल बनकर जग में
अपनी सुगन्ध फैलाई।
कांटों के बीच रहकर भी
लड़ी अपनी लड़ाई।

सुगंध से सुवासित
दुनिया भी हरषाई।
लिया प्रेम से गोद में
कांटों से जान छुड़ाई।

पर भाग्य नहीं एक सा
कभी साथ न देता।
फूल बनकर भी फिर
काम अलग देता।

वरमाला में गूंथेकहीं
कहीं मंदिर में सजी।
शव के ऊपर भी कभी
सज्जा का सामान बनी।

कहीं भी रहे वह
बस मान बना रहे।
वह नाजुक कली थी
यह सबको याद रहे।

वह नन्हीं सी कली

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Photo by Joshua J. Cotten on Unsplash

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About शशि शर्मा 1 Article
श्रीमती शशि शर्मा तीस साल तक शासकीय शिक्षिका के रूप में कार्य करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति। पढ़ने का शौक बचपन से था, कुछ छुटपुट लिखा भी। अभी भी लेखन स्वास्थ्य और मूड पर निर्भर रहता है।
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