
वह नन्हीं सी कली
शाख़ पर बैठी।
मुझे देख धीरे से
शर्माई, मुस्काई।
कांटों की गोद में
अस्तित्व अपना बचाती।
एक दिन अचानक
जोर से खिलखिलाई।
फूल बनकर जग में
अपनी सुगन्ध फैलाई।
कांटों के बीच रहकर भी
लड़ी अपनी लड़ाई।
सुगंध से सुवासित
दुनिया भी हरषाई।
लिया प्रेम से गोद में
कांटों से जान छुड़ाई।
पर भाग्य नहीं एक सा
कभी साथ न देता।
फूल बनकर भी फिर
काम अलग देता।
वरमाला में गूंथेकहीं
कहीं मंदिर में सजी।
शव के ऊपर भी कभी
सज्जा का सामान बनी।
कहीं भी रहे वह
बस मान बना रहे।
वह नाजुक कली थी
यह सबको याद रहे।
वह नन्हीं सी कली
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