
पर्यावरण का विनाश
पतझड़ बीता सावन आया मौसम
ने ली अंगड़ाई
फ़िज़ा में रंग बिखरे अब पपीहे की
गूंज सुनाई
पंछियों की धरा पर चहचहाहट यह गूंज
कानों को भाई
हरियाली लिए संग फूलों की खुशबू
बिखेरता चमन
फिर भी मौसम कुछ उदास खाली
कुर्तियां बगिया की
चमन तके राह मनक की जो रोज
ठहाके लगाते
अब चमन में वह बोल क्यों नहीं
गूंज पाते
मौसम कुछ उदास खिलते फूल
मुरझा गए
वन में वृक्षों का अभाव आया गरल
हवा का सैलाब
इंसा मौत के खौफ में जी रहा हरे
चमन से दूर
पर्यावरण का विनाश यह भार
उठाएं पल रहा
होती वृक्षों से भरी वसुंधरा तो गरल
हवा ले जाती
सांसों को मोहताज जिंदगी यू आज
ना देखी जाती
भू पर आई नई बहार फिर भी
मौसम कुछ उदास
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image by Pepper Mint from Pixabay