
प्रकृति नारी के रूपों सी नजर आती है
जीवन के आरंभ से ही,
नन्ही कली सी मुस्कुराती है।
नन्ही सी प्यारी गुड़िया बन,
अल्हड़, चंचल सी बहती जाती है।
प्रकृति नारी के रूपों सी नजर आती है…
शिक्षा को बढ़ाती बालिका,
गेहूँ की बालियों सी लहराती है।
युवती सा बदलाव हमें,
बहती नदियाँ सिखाती जाती है।
प्रकृति नारीके रूपों सी नजर आती है…
पिता की डांट सा बादल गर्जन,
वह वर्षा की बूंदों सा हमें बचाती है।
संवेदनहीन जीवन में भी कभी,
आंचल सी छांव दे जाती है।
प्रकृति नारी के रूपों सी नजर आती है…
नवसंबंध की नींव बन,
लता-वृक्ष सी रीत निभाती है।
(सास) सा जीवन देकर,
श्वासों से नाता बनाती जाती है।
प्रकृति नारीके रूपों सी नजर आती है…
वृद्धावस्था में कभी,
पतझड़ सी मुरझाती है।
कभी नन्ही कलियों संग,
फिर बसंत बहार सी बन जाती है।
प्रकृति नारीके रूपों सी नजर आती है…..।
Image by Aravind kumar from Pixabay
बहुत बढ़िया कविता स्वाति जी
आप बहुत उन्नति करें ऐसी प्रार्थना है