
शीर्षक : बंद दरवाजा की दस्तक
हर तरफ अब खामोशी छाई बंद दरवाजे की
दस्तक कानों में सुनाई ,
सिमट के रखा खुद को अपनो के संग ,
चार दीवारों में
अपनों का साथ हकीकत हो कहीं ख्वाब ,
ना बन जाए।
आज तो टल गई मौत कल कहीं आगाज
न दे जाए।
बंद दरवाजे की दस्तक दिल में नस्तर
चुभोती
खोलें जो पट वही मौत के मंजर,
दिख पाएंगे।
बहुत कुछ खो दिया अब और ना किसी
को देख पाएंगे।
बंद दरवाजे की दस्तक से रूह
कांप जाती ।
कौन है जो मुझे दस्तक दे डरा रहा
मेरा डर या
आबोहवा जो दस्तक दे मुझे और
कमजोर बना रहा ।
बंद दरवाजे की दस्तक कानों में सुकून
नहीं दर्द दे जाती ,
सबके घर में उजाला पर दिल में इतना
अंधेरा क्यों
गम के शाहकार हो गए जी भर कर भी
जिंदगी नहीं जी रहे।
ऐसे किरदार निभा रहे दहशत में
लम्हे गुजार रहे
बंद दरवाजे की दस्तक मुझको
कमजोर बनाती
नश्तर चुभोती हुई यह आवाज कानों
में गूंज जाती।
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