मुझे मेरा वो गाँव याद आता है

मुझे मेरा गाँव याद आता है

मुझे मेरा वो गाँव याद आता है ..

बरगद की छाँव में
बैठ के भुट्टे खाना,
संग दोस्तों के वहाँ 
घंटों भर बतियाना,
नहीं भुलाये भूलता
वो गुजरा जमाना ,

माँ के डर से छुपके जाना, ठंड में ठिठुरता वो नंगा पाँव याद आता है।
मुझे मेरा वो गाँव याद आता है…..

सरसों के खेत में
तितलियों के पीछे भागना,
धान के ढेर पर लेटकर
रात भर वो जागना,
बूढ़ी दादी का दुलार
वो बसंत बहार,

बरसात के मौसम में उफ़नती नदी का वो तेज बहाव याद आता है।
मुझे मेरा वो गाँव याद आता है…..

चेहरों पे होती मुस्कान
लहलहाते खेत-खलिहान,
बैसाखी पे जोश में भरते
बच्चे, बूढ़े और जवान,
परिंदों की लंबी कतारें
खिला-खिला नीला आसमान,

मक्की की रोटी सरसों का साग खाने का मेरा वो चाव याद आता है ।
मुझे मेरा वो गाँव याद आता है…..

चौपालों, चौराहों पे
हुक्कों की गुड़गुड़ाहट,
मिट्टी से लेपे आँगन में
रंगोली की सजावट,
पगडंडी की सैर
नन्हें क़दमों की आहट,

जहां गिरा था फिसलकर मेढ़ पे  मेरा वो घाव याद आता है ।
मुझे मेरा वो गाँव याद आता है……

बापू की मीठी घुड़की
मल्लाह का राग अलापना,
कंधे पे बैठ मेला देखना
पतंग का उड़ाना
तोतली ज़ुबान में ग़ुब्बारे माँगना,
कैसा हसीं पल था बड़ा सुहाना,

बहन की चोटी खींचकर चिढ़ाने का मेरा वो दाव याद आता है।
मुझे मेरा वो गाँव याद आता है……

सादगी का आलम था चहूँ और
ना आधुनिकता था कहीं ज़ोर,
मंद-मंद रौशनी में टिमटिमाते 
बस तारों का ही था शोर,
प्रेम-मग्न थे सब अपनी धुन में
ना ज़ुल्म कोई था ना ज़ोर,

नजरें मिलना, हंसना गुदगुदाना “दीप” तेरा निश्छल सा वो लगाव याद आता है।
मुझे मेरा वो गाँव याद आता है !

और कविताएँ पढ़ें

Image by vijendra kushwah from Pixabay

शेयर करें
About कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप" 2 Articles
कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप" शिक्षक एवं लेखक हिसार ( हरियाणा )
4.8 4 votes
लेख की रेटिंग
Subscribe
Notify of
guest

1 टिप्पणी
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप"
कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप"
2 years ago

हार्दिक आभार मेरी रचना को अपने पटल पर स्थान देने के लिए।