
शब्दों की पंखुड़ी, चंदन महका घर आंगन
बौराये आम, टेसू फूले,
मचली धरती, लहराई फसल,
महक रही पुरवाई, बरखा बहार आई……
अठखेली करे धूम मचाये,
अधखिली धूप, लुक छिप जाये,
अमृत रस बरसाये, चलो वसंत उत्सव मनायें।
फागुन की ऋतु आई, कोयल की कूक सुनाई,
मधुर कंठ सरगम गाये, हरियाली अंगुरी धरती,
राग मल्हार गाये, चलो नव गीत सुनाये…..
प्रकृति का रूप स्वरूप सजायें,
बाग बगीचे मन मुस्काये,
सौंधी सौंधी माटी की खुश्बू,
चंदन सी सुगंध महकाये,
तरु पल्लव नित नव निखार,
अदृश्य दृश्य दिखाये, चलो वासंती पर्व मनायें।