
शिव गौरा
बाबा महाकाल की इस नगरी से,
वरदान मिले मुझे भोले बाबा से
धरा सी धैर्यवान बन जाऊ
और सरल सहज बन मुसकाऊ
देख कर आकाश की ओर
छू लू ऊंचाईयों के छोर
धरा से गगन का सफर
इस डगर से उस डगर
बन जाऊ अग्नि सी उज्जवल
तेजस्वी बनू पर रहूं सरल
पवन सी मंद शीतल सुगंध
चारों ओर फैलाऊ सिन्दूर रंग
चहु और भानु सा उजियारा
मिटा सकूं अनाचारो का अंधियारा
जल, थल और नभ में तेरा ओरा
यह शुभाशीष देना मेरे शिव और गौरा
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