श्रृंगार

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विषय -श्रृंगार मन हरण घनाक्षरी

कर चली है श्रृंगार,
एक अलबेली नार,
नैन में अंजन सार,
ये तो मतवाली है।

माथे बिंदिंया है लाल,
सुर्ख हैं गुलाबी गाल,
दंत -पंक्ति मोती माल,
छबि ही निराली है।

इठलाती कामिनी ये,
मन मोहिनी है छवि
दमकी दामिनी जैसे
महा बलशाली है।

अधर मधुर रस.
मन खीचें बरबस,
वाणी मीठी है शहद,
शहद की प्याली है।

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About सुषमा शर्मा 6 Articles
श्रीमती सुषमा शर्मा, इंदौर शिक्षा: ओल्ड, जी, डी, सी कॉलेज से स्नातकोत्तर। विधा: लघुकथा लेखन, कहानी, संस्मरण ,कविता आदि, समाचार पत्र में कविता प्रकाशित उपलब्धि: आकाशवाणी भोपाल से 20 वर्ष मालवी लोक गीत गाए व 10 वर्ष तक अवधी भाषा में भी गाए व कई पुरस्कार प्राप्त किए व मंच पर भी कई कार्यक्रम भी दिए। सिलाई -प्रशिक्षण से डिप्लोमा कर, बी.एच.इ .एल .भोपाल की ( वेलफेयर विंग संस्था) में गरीब बच्चों के लिए कपड़े सिल कर बच्चों में निशुल्क बाँटे । मेरी रूचि:संगीत व गायन व साहित्य से भी बहुत लगाव है। अध्यात्म से लगाव है।
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