
—- समय की लिखावट —-
क्यों अपने समकक्ष मानते हो मुझे?
क्यों मुझसे ईर्ष्या रखते हो?
मैं नही हूँ बेहतर दिखने की किसी दौड़ में शामिल
ना ही शौक है मुझे किसी प्रतिस्पर्धा का।
मन की बुरी नही हूँ यह तय है।
थोड़ी अलग इसलिए
हूँ मैं जमाने से।
की कोई ख्वाहिश पूरी नही होती मेरी यहां।
समय लिखता रहता है हर पल मुझे ।
मैंने नही लिखी अपनी इबारत
समय की ही लिखावट हूँ मैं।
चुप रहती हूं इसलिए रिश्ते निभ जाते हैं मेरे
बोलूँ कुछ मेरे हक में तो अकेली रह जाती हूँ
और देख अकेली मुझे आ दबोचती हैं उलझने।
तब क्षमता से अधिक दम लगा कर भीड़ जाती हूं बाहर निकलने उनसे
और फिर बाहर आ कर मुस्कुरा देती हूँ
तुम मुझे अपना प्रतिद्वंद्वी मान बैठते हो।
तो तुम अपनी जिंदगी बेफिक्र जिओ और मुझे दुआएं दो
ताकि मेरी मुस्कान बरकरार रहे
और मैं लिख कर बता सकूँ अपनी भावनाओं को
शब्दांजली दे सकूँ..
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