
शीर्षक: सुनहरा बचपन
आज खोली जीवन की किताब
हर पन्ने पर कुछ इस तरह था,
जीवन के खट्टे-मीठे पलों का हिसाब,
कभी कड़ी धूप मिली जीवन में,
तो कभी पीपल की घनी छाँव,
कभी काँटों भर सफर रहा तो,
चमन में फूलों की बहार।
कभी दुखों के काले बादल थे तो,
कभी सुखों की सावनी फुहार।
कभी कुछ पल का प्यार मिला तो
कभी लम्बी तकरार।
कभी क्रोध से भरा मन था तो,
कभी मिली शान्ति अपार।
बस
पहला पृष्ठ था , मधुर-सुहाना
वह था मासूम बचपन हमारा।
छलावे से दूर बहुत था मन,
चंचल और भोला बहुत था मन।
न कोई गैर था, न किसी से बैर था।
चहकते, फुदकते रहते थे
चिड़ियों की तरह घर-आँगन में,
खिलते, महकते रहते थे,
चमन के फूलों की तरह।
होती एक पल में कट्टी, दूजे ही
पल में बट्टी हो जाती थी ।
न राग और न द्वेष था मन में,
सभी को अपना समझते थे।
बचपन की यादों से मन
बचपन में खो जाता है
फिर अपने ही नन्हे फूलों में
(नाती-पोतों में)
ढूंढती हूं अपना खोया बचपन
दिल फिर बच्चा बन जाता है ।
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