दोहा-दरबार

हिंदी दोहे

हिंदी दोहे मैट्रिक्स मीटर में रचित हिंदी कविता में स्व-निहित तुकबंदी का एक रूप है। कविता की यह शैली पहले अपभ्रंश में आम हो गई और आमतौर पर हिंदुस्तानी भाषा की कविता में इसका इस्तेमाल किया गया। यह दो पंक्ति का होता है इसमें चार चरण माने जाते हैं | हिंदी दोहे के विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं। (1)

मेरे स्वरचित दोहे

करते हम गुरु वंदना, अवसर आया आज।
मिले ज्ञान गुरु से सदा,सफल तभी हों काज।।

ज्ञान बड़ा अनमोल है,इसका आदि न अंत।
गुरु मिलने से सब मिले, यही बताते संत।।

पहली गुरु माँ है सदा,देती जीवन ज्ञान।
रोम-रोम में वो बसे,बहती रक्त समान।।

गुरु ज्ञानी सूरज बड़ा,करता पुण्य महान।
उजियारा जग में करे, देता अद्भुत ज्ञान।।

सीख-सीख कर सीखते, करते बात विचार।
मुरु-महिमा कहती यही,मिथ्या सब संसार।।

कलम उठा हम सीखते,हुई तेज अब धार।
गुरुवर के आशीष से,उतरेंगे सब पार।।

कागज पर अक्षर रचें, फूँकें उनमें जान।
गुरु के सुंदर लेख में, बसते हैं भगवान।।

  1. विकिपीडिया पर हिंदी दोहे की जानकारी

कहानियां भी पढ़ें : लघुकथा

Image by Harish Sharma from Pixabay

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About रश्मि स्थापक 2 Articles
रश्मि स्थापक उच्चतर माध्यमिक शिक्षक(हिन्दी) मनपसंद विधाएं- कविता,कहानी, लघु कथा, क्षणिका,लेख और दोहे। साहित्यिक,सांस्कृतिक राज्य स्तरीय गतिविधियों का मंचीय संचालन आकाशवाणी एफ एम पर कंपीयर। आकाशवाणी पर कविताओं और वार्ताओं का समय समय पर प्रसारण। स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का समय-समय पर प्रकाशन ।
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