जीवन

जीवन

विफल मन शापित जीवन
क्या पूर्ण कर पायेगा किसी का रिक्त पन।

बोझ हुआ जाता जीवन
संवरण करता गया वरण।

ना थमा दौर सुमधुर स्मृति का
ना मुक्ति मिली दुविधा के झंझटों से।

नियति निष्ठुर खेलती रही
दांव मेरे जीवन का अपने पासों से।

हँसी और आंसू के
मिश्रित गीत गाती रही।

ओझल रहे नयनों से तो क्या
अनुभूत संग तेरा पाती रही।

और कवितायेँ पढें : शब्दबोध काव्यांजलि

Photo by Ravi Roshan on Unsplash

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About दामिनी पगारे 6 Articles
मैं श्रीमती दामिनी सुनील पगारे एम. ए.(राजनीति शास्त्र) बड़वाह जिला-खरगोन(M.P.) लगभग बाईस साल से स्वान्तःसुखाय लिख रही हूं। माता पिता के आशीर्वाद ,सभी परिजनों के प्रोत्साहन और अन्य सभी स्वजन के स्नेहाशीष, सद्भावनाओं से सोशल मीडिया पर अपनी पहचान बना पाई।
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