
शीर्षक : क्षणों को जीते जाना
उम्र को सहते जाना,
क्षणों को जीते जाना,
लो माला गूंथ ली,,,
और वक्त सरक गया,
दीनता और हीनता,,
गुनगुनाते मच्छरों की भांति
हर वक्त आक्रमण को,,,
तैयार ही रहती है,,,
दिपपाते ऑल आउट को,,
निरखते आत्मविश्वास को ,,,
बाल कर रखना ही होगा,,
बालकर रखना ही होगा
निभाए जाते हैं संबंध,
लहू के हम भी ,,,,
कुछ जप्त और ,,,,
कुछ समझदारी के साथ
यूँ ही दिल की बेपरवाही के,,,
अंजाम हुआ करते है,,,
कुछ कबीर दिलों के,,
इस तरह के भी ,,,
काम हुआ करते है,,
ये बेनाम से हल्के से,,
अनकहे रिश्ते,,,,
जिये ही जाते है,,,
जाने क्यों हमारी,,,सांसों में,
मेरी हर छांव अब,,,
धूप हुई जाती है,
जिंदगी ऐसे ही,,,
दिन रात हुई जाती है,
अब न दवा रास हमें,,
और न सूंकूँ रास हमे,
जब थे बैचेन,,,,,,
इन दो की ही,,,,
दुआ करते थे,,,,,।
मन मे छुपा हुआ है,,
हड़जोड़ का पौधा,,
कितना भी टूटे मन,,,
झट जोड़ देता है,,,
मेरी हर छांव अब,,
धूप हुई जाती है,,,
जिंदगी ऐसे ही,,,
दिन रात हुई जाती है,,
सरपट सरपट मन का घोड़ा,
जाने इसे कहाँ है जाना,,,,
मैं हूँ रोकती,,वो है लरजता,,
इसका अब मैं क्या कर लूंगी,।
Photo by Luke Stackpoole on Unsplash
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