
विषय: श्रृंगार
विधा: मनहरण घनाक्षरी
कनक सी कांति युक्त,
रूप यौवनी संयुक्त,
पोर पोर प्रेम सूक्त,
कामिनी रिझाती है।
अलक है मेघ माल,
अधर रंगे हो लाल,
भाल ज्यों कुमुद ताल,
देह मदमाती है।
झरते है मोती सभी,
स्मित झलकाती तभी,
नैन भर देखे कभी,
वनिता लुभाती है।
लाज भर लाजवंती,
मधु जैसे रसवंती,
केसर खिली बसंती,
प्रीत गीत गाती है।।
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