मनहरण घनाक्षरी – श्रृंगार

श्रृंगार

विषय: श्रृंगार
विधा: मनहरण घनाक्षरी

कनक सी कांति युक्त,
रूप यौवनी संयुक्त,
पोर पोर प्रेम सूक्त,
कामिनी रिझाती है।

अलक है मेघ माल,
अधर रंगे हो लाल,
भाल ज्यों कुमुद ताल,
देह मदमाती है।

झरते है मोती सभी,
स्मित झलकाती तभी,
नैन भर देखे कभी,
वनिता लुभाती है।

लाज भर लाजवंती,
मधु जैसे रसवंती,
केसर खिली बसंती,
प्रीत गीत गाती है।।

Image by deepak meena from Pixabay

और कवितायेँ पढें : शब्दबोध काव्यांजलि

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About आरती डोंगरे 2 Articles
श्रीमती आरती डोंगरे, खरगोन (म .प्र.) शिक्षा--B.sc. , M.A., B.ed. विधा-गद्य एवम काव्य दोनों विधाओं में सृजन व्यवसाय-व्याख्याता (शा.हायर सेकंडरी स्कूल) दो ग़ज़ल संग्रह , दो कविता संग्रह एवम गीत संग्रह प्रकाशनार्थ काव्यमेध, सृजन फुलवारी,एवम प्रसंग साझा संकलन प्रकाशित।
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