
सुन री सखी
आज आँगन में कागा कांव कांव बोला।
मन हरष उठा,
आएगा कोई अपना प्यारा।
री सखी बता दे कौन है वो।
उसके आने की आहट हवाओं ने दी,
फिज़ाओं ने मानों महक है बिखेरी।
अब तक जो मैं सिकुड़ी-सिमटी रही थी,
आहट पाते ही दिल की कली खिल गई।
बाहर आकर जो देखा मैंने उस तरफ,
बागों बगीचों में भी अब तो बहार आ गई।
तितलियाँ भी सब रँगबिरगी हुई,
भौरे भी मंडराने लगे फूल ऊपर।
उसने आंगन में मेरे कदम जो रखा,
मन में चलने लगी फागुन की बयार।
मैं भी करने चली अपना सोलह सिंगार,
सज लूँ और कर डालूँ अपने रूप का निखार।
बौराने लगी,गुनगुनाने लगी,
उसके स्वागत की तैयारी करने लगी।
रंगों का चयन भी मैं करने लगी,
कौन से रंगों से रंग मैं डालू उसे।
सबसे प्यारा लगा मुझको वासन्ती रंग,
लेके हाथों में, मैं बैठी थामे जिगर।
सखी अब तो बता दे तेरा कौन है कन्त,
री अली, प्यारा नाम है उसका
बसन्त
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दीदी बहुत सुंदर बसंत आपके शब्दो से और सुंदर होगया।