
जय माँ नर्मदा
अमरकंटक से निकली सहस्त्रनाम
से जानी जाती
निर्मल जल ले कल कल बहती हर दिशा में
…नजर आती
पापियों के पाप धोए दर्शन दे संतों
का मान बढ़ाती
हर कंकर शंकर कहलाए संतों की वाणी
ये कथा सुनाती
निर्मल जल धारा बहती कभी रौद्र रूप में
दिखती नजर आती
रेती का श्रृंगार लिए हरे भरे वृक्षों के घने जंगल में
अपना मार्ग बनाती
कभी चट्टानों से टकराती कभी सरोवर रूप में
सौम्य रूप में नजर आती
ऋषि मुनि तपस्वी योगी ले करतार जस गाते
कर कीर्तन अपना पुण्य बढ़ाते
नर्मदा जयंती की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं
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