
नववर्ष ये प्रकृति का है, और सृष्टि इसे मनायेगी।
पल्लवित होंगे पुष्प-पत्र नव,
नव अंकुर नज़र आयेंगे।।
गीत ये सृष्टि कर्ता के कौशल का है,
सर्व जगत इसे गायेगा।
नदियां ,पर्वत ,झरनों की ताल है,
पशु-पक्षी स्वर मिलायेंगे।।
मानवता की अक्षमता खूब देखी,
धरा-अम्बर अपनी सक्षमता दिखाएंगे।
पवनचक्की को वायु ने चलाया है,
वृक्ष और पौधे लहराकर ये बताएंगे।।
मुट्ठी भर दीपक क्षणों के लिए जलते हैं,
ईश्वर के चंदा-सूरज अनंतता को जताएंगे।।
हठी, घमंडी, कृतध्नी मानवता को,
प्रकृति अनुशासन सिखलाएगी।
नववर्ष ये प्रकृति का है और सृष्टि इसे मनायेगी।।
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