प्रार्थना

प्रार्थना

हो भोर तुम्हीं और साँझ तुम्हीं
नभ भी तुम ,पाताल तुम्हीं,
है धरा तुम्हारी, व्याप्त रहो
तुम मार्ग मेरा प्रशस्त करो !!
शीत हरो, सब ताप हरो ,
मन के सब संताप हरो ,
सूर्य बनो, और तिमिर हरो ,
मार्ग मेरा प्रशस्त करो !!
आहत मन ,आश्वस्त करो,
अंतर्मन को रिक्त करो,
और मार्ग मेरा प्रशस्त करो !!
मोह तजूँ ,मैं लोभ तजूँ ,
मन तृष्णा से विरक्त करो ,
मार्ग मेरा प्रशस्त करो !!
छूटे जन्मों के फेर सभी,
इक बार तुम्हें पा जाऊँ जो
दे दर्शन, नयन अब तृप्त करो ,
तुम मार्ग मेरा प्रशस्त करो!!

Image by truthseeker08 from Pixabay

और कवितायेँ पढें : शब्दबोध काव्यांजलि

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About वीणा मंडलोई 6 Articles
वीणा मंडलोई शिक्षा - स्नातकोत्तर (वनस्पति शास्त्र) डिप्लोमा -ड्रेस डिजाइनिंग , वोकेशनल ट्रेनिंग-विभिन्न आर्ट्स में । रुचि -हिंदी साहित्य, हस्तशिल्प भावांजली संस्था में सहसचिव के पद पर कार्य करते हुए ,अन्य सामाजिक संगठनों में सक्रिय रूप से भागीदार हूँ । कई सामाजिक समारोह में मंच सज्जा एवं मंच संचालन करती हूँ । कुछ हिंदी पत्र पत्रिकाओ में लेखन प्रकाशित होता रहा है ।
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