
हो भोर तुम्हीं और साँझ तुम्हीं
नभ भी तुम ,पाताल तुम्हीं,
है धरा तुम्हारी, व्याप्त रहो
तुम मार्ग मेरा प्रशस्त करो !!
शीत हरो, सब ताप हरो ,
मन के सब संताप हरो ,
सूर्य बनो, और तिमिर हरो ,
मार्ग मेरा प्रशस्त करो !!
आहत मन ,आश्वस्त करो,
अंतर्मन को रिक्त करो,
और मार्ग मेरा प्रशस्त करो !!
मोह तजूँ ,मैं लोभ तजूँ ,
मन तृष्णा से विरक्त करो ,
मार्ग मेरा प्रशस्त करो !!
छूटे जन्मों के फेर सभी,
इक बार तुम्हें पा जाऊँ जो
दे दर्शन, नयन अब तृप्त करो ,
तुम मार्ग मेरा प्रशस्त करो!!
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