
जब से तुम आये जीवन में
भूल बैठी मैं अपने सपने
प्रीत बसी कुछ ऐसी मन मे
तुमने देखे हैं जो सपने
लगे वहीं बस मुझको अपने
प्रियतम से लगन लगी जबसे
बिना बात ही मुस्कुराऊँ तबसे
वो धड़कन मे समा गये ऐसे
हर सास मे नाम उनका ही जैसे
दर्पण देख मैं शरमाऊँ
शृंगार करूँ और इठलाऊँ
प्रियतम को देख मैं छुप जाऊँ
पिया मिलन को मचल जाऊँ
तुमने आकर जीवन को मेरे
पतझड़ से सावन बना दिया
तुम हृदय में बस गये ऐसे
प्राण बसते शरीर में जैसे
तुम्हारी मुस्कान का जादू हैं ये
जीवन बगिया जो महका जाये
तुम्हारी प्रीत लगे मुझको प्यारी
जैसे कान्हा को राधा लगे प्यारी
हम रहे संग सदा ऐसे
दिये के संग बाती रहती जैसे
हम प्रीत की रीत निभाये ऐसे
शिव के संग गौरी रहती जैसे
और कवितायेँ पढें : शब्दबोध काव्यांजलि