अकेला बचपन

अकेला-बचपन

उसे तो शाम का इंतजार था कि कब शाम हो और वह भी बाहर घूमनें जाये अपने दादाजी के साथ।

दिन भर वह दादी के आगे पीछे घूमता रहा।

जब श्याम ने रमा को बताया कि कल सुबह की गाड़ी से मम्मी पापा आ रहे है।

तब यह बात सुनकर वैभव बहुत खुश हुआ।

अब वह भी रोज अपने दादाजी के साथ बगीचे में घूमने जा सकेगा।

अपनी दादी के साथ रात को कहानी सुनते हुये सोयेगा।और भी बहुत सारी छोटी छोटी बातें पूरी करवाएगा।

वैभव 5 साल का था। माता पिता दोनो जॉब में।

जब अपने दोस्त सोमेश, जो कि पड़ोस में ही रहता था उसे अपने दादाजी के साथ घूमते देखता, तब वैभव को ये कमी खलती थी कि काश मेरे दादा दादी भी साथ में होते।

आज जब मालूम हुआ तो वह बहुत खुश हुआ।

दूसरे दिन सुबह ही वैभव ने देखा कि पापा ने गाड़ी निकाली और कहा कि मैं मम्मी-पापा को लेने रेलवे स्टेशन जा रहा हूँ, तब वह भी साथ हो लिया।

समय पर ट्रेन आई, दादाजी और दादी ने बेटे और पोते को देखा।

बेटे ने पैर छुए, पोते को दोनों ने खूब प्यार किया।

दादी और दादाजी बहुत सुंदर सुंदर खिलौने लाये, खूब सारी टॉफियां मिठाई लाये।

लेकिन इन चीजों की तो घर में कोई कमी नहीं थी।

वैभव थोड़ी देर खिलौनों से खेला और रख दिये।

उसे तो शाम का इंतजार था कि कब शाम हो और वह भी बाहर घूमनें जाये अपने दादाजी के साथ।

दिन भर वह दादी के आगे पीछे घूमता रहा।

शाम हुई कि वैभव ने दादाजी को गार्डन में चलने को कहा।

दादाजी क्रिकेट मैच के शौकीन।

मैच चल रहा था इसलिये उन्होंने कहा कि आज नहीं बेटा कल चलेंगे।

वैभव उदास होकर चुपचाप बैठ गया।

रात को दादी के पास सोया कहानी सुनाने की जिद की तो पापा ने डांट दिया कि दादी को परेशान मत करो, सफर की थकान है उन्हें आराम करने दो।

दूसरे दिन भी वही हुआ।

दादाजी दिन भर किसी काम में व्यस्त।

टी वी देख रहे है, या मोबाइल पर दोस्तों से बात करने में ही समय पूरा हो गया।

फिर और दूसरे दिन जब बच्चे ने जिद की तो दादाजी तैयार हो गये जाने के लिये।

वैभव बहुत खुशी खुशी गार्डन में गया, वहाँ पर सोमेश अपने दादाजी के साथ छुपा छुपी खेल रहा था।

वैभव ने भी जिद की अपने दादाजी से कि आप भी हमारे साथ पकड़ा पकड़ी खेलो, परन्तु दादाजी ने मना कर दिया,

कहा कि तुम दूसरे सब बच्चों के साथ खेलो, और अपना मोबाइल लेकर बगीचे में लगी हुई बेंच पर बैठ गये।

वैभव भी थोड़ी देर इधर उधर घूमकर रुआँसा होकर दादाजी के पास बैठ गया।

ज्यादा दोस्त थे नहीं।

दादाजी ने पूछा कि घर चलना है तो बच्चे ने हाँ में सिर हिला दिया।

रात में भी दादी के पास सोते हुये कहानी सुनाने की बात हुई तब दादी, जो कि मोबाइल पर कोई सी रेसिपी देख रही थी

उन्होंने कहा दिया कि बेटा अभी सो जाओ, कल कहानी सुन लेना।

दूसरे दिन दादाजी सुबह उठे।

नित्यकर्म से निपट, स्नान, ध्यान, सुबह के नाश्ते से फारिग होकर सोफे पर बैठे और इधर उधर नजर दौड़ाई, यह देखने के लिये कि मोबाइल कहाँ पर है।

याद आया कि रात को सोने से पहले टी वी के पास रख दिया था।

उठकर टी वी के पास देखा, लेकिन वहाँ कहीं नहीं दिखा।

दिमाग पर जोर डाला कि कहाँ रख दिया होगा।

लेकिन बार बार याद आ रहा था कि मोबाइल और चश्मा दोनो टी वी के पास ही रखे थे।

चश्मा तो अपनी जगह पर मिल गया लेकिन मोबाइल नहीं है उस जगह।

बहू को पूछा, पत्नी से भी कहा, उन दोनों को भी नहीं पता था फिर भी उन्होंने इधर उधर देखा,

नहीं मिला तो अपने अपने काम मे लग गये।

श्याम दस बारह दिनों के लिये टूर पर गये थे।

दादाजी ने सोचा कि कहीं श्याम बेटा ने तो भूल से अपने बैग में नहीं रख लिया।

लेकिन वह क्यों ले जाने लगा।

हो सकता है कि वैभव ने रात को खेलते खेलते तो नहीं इधर उधर रख दिया।

पर वह तो रात को जल्दी ही सो गया था।

सुबह जल्दी जल्दी स्कूल जाने के लिये तैयार होता है।

उसकी मम्मी रमा उसके आगे पीछे घूमती रहती है, दूध नाश्ता और तैयार करने के लिये।

ऐसे में मोबाइल को क्या खेलेगा।

खैर, थक हार कर दादाजी ने सोचा कि वैभव स्कूल से आयेगा तब उससे ही जानकारी मिल सकती है कि मोबाइल उसी ने तो भूलवश कहीं रखा तो नहीं है।

दोपहर में वैभव स्कूल से आया।

आते ही मम्मी, दादाजी, दादी ने एक साथ पूछना शुरू किया मोबाइल के बारे में।

लेकिन उसने मना कर दिया कि मुझे नहीं पता।

सभी आश्चर्य में थे कि आखिर मोबाइल कहाँ होगा।

रिंग करके भी कई बार देख चुके थे।

बेल भी नहीं जा रही थी।

टी वी रूम में किसी का भी आना जाना नहीं होता था।

फिर??

खैर शाम हुई।शाम के समय दादाजी पोते को लेकर बगीचे में गये उसके साथ बहुत देर तक खेलते भी रहे।

आज बहुत फुरसत में थे।

हम उम्र लोगों से भी बातें करते रहे।

वैभव के कहने पर दोनों दादा- पोता घर आये।

वैभव आज बहुत खुश था।दादाजी के साथ गार्डन में बहुत मजा आया।

रात को दादाजी ने उसे अपने पास सुलाया और कहानियां सुनाई रामायण की, महाभारत की।

वैभव सुनते सुनते सो गया।

बेटा श्याम दस बारह दिनों में टूर पर से आयेगा।

दादाजी को बार बार ये बात याद आती कि आखिर फोन कहाँ गया।

अभी चार महीने पहले ही लिया था।

बड़े शौक से चलाना सीखा और नई नई जानकारियां लेने के लिये ज्यादा से ज्यादा उस को चलाते रहते थे।

अब थोड़ी देर टी वी में समाचार देखते, फिर कुछ काम नहीं।

अब वे वैभव का स्कूल से आने का इंतजार करते।

और उसके आते ही उसके सभी काम, कपड़े बदलवाना, खाना खिलाना वे खुद ही करते।

उन्हें इसमें बहुत मजा आता था और टाइम पास भी हो जाता था।

शाम को गार्डन, रात में कहानियां, ढेर सारी बातें। वैभव को तो मानो मन मांगी मुराद मिल गई।
दस बारह दिनों बाद श्याम जब टूर पर से आये, तो देखा कि वैभव दादाजी के साथ गार्डन में गया है।

वहाँ से आया तो बहुत ही चहक चहक कर पापा से बात की।

रात को दादाजी से कहानियां सुनी।

मोबाइल के गुम होने की बात से थोड़ी हैरानी हुई।

खैर दस बारह दिनों में बाहर रहने के कारण थकान हो आई थी।

इसलिये रात को जल्दी ही सो गये।

सुबह उठकर वैभव को स्कूल के लिये रमा तैयार कर रही थी।

श्याम ने भी सुबह की चाय पी और पेपर पढ़ते पढ़ते पापा से कहा कि आज मैं ऑफिस से आऊंगा तब हम बाजार चलेंगे और आपके लिये नया मोबाइल ले आयेंगे।

इधर वैभव ने सुना तो चमक उठा कि फिर से दादाजी का मोबाइल आ जायेगा।

वह अचानक बोल उठा कि उसको भी पानी की टँकी में फेंक दूंगा।

बोला तो धीरे से ही था लेकिन रमा ने सुन लिया।

उसे बहुत गुस्सा आया और उसे मारने के लिये हाथ उठाया।

लेकिन दादी ने इशारे से बहू को मना कर दिया।

उनकी अनुभवी आंखों ने सब कुछ जान लिया।

दादी ने बहुत प्यार से पूछा कि बेटा तुमने ऐसा किस लिये किया।

पूछने पर वैभव ने बताया कि सोमेश और उसके दादाजी रोज रोज गार्डन जाते है,

मुझे भी दादाजी के साथ खेलना है, कहानियां सुननी है।

इसलिये मैंने दादाजी का मोबाइल पानी की टँकी, जिसमें कि छोटी सी जगह खुली थी उसमें फेंक दिया।

दादाजी ने बहू बेटे को धीरे से समझाया कि बच्चे को डांटना उचित नहीं है उसे समय दिया जाय।

उसके साथ खेलना, घुमना ,बातें करना जरूरी है।

आजकल के बच्चे अकेलेपन के शिकार हो गए है और ऐसी उल्टी सीधी हरकतें करने पर मजबूर है।

उन्हें माता पिता से समय चाहिये।

अब दादाजी वैभव के साथ रोज गार्डन भी जाते है खेलते भी है कहानियां भी सुनाई जाती है।

होमवर्क भी करवाते है।

रमा और श्याम को भी अपनी गलती समझ में आ गई है।

वे भी उसे ऑफिस से आने के बाद जितना हो सके उसके साथ समय बिताते है।

वैभव भी खुशी से दिन भर चहकता हुआ घूमता फिरता है।

और कहानियाँ पढ़ें कथांजलि

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About प्रभा शुक्ला 12 Articles
श्रीमती प्रभा शुक्ला , खरगोन , मध्य प्रदेश मैं एक गृहणी हूँ ,बचपन से ही पढ़ना और गीत सुनना मेरा शौक में शामिल रहा है अच्छे साहित्य में रूचि है , कहानी और कवितायेँ लिखती हूँ
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