
कावेरी ने अपने सिर पर भारी सा टोकना उठाया, जिसमें मट्टी के कुल्हड़,सकोरे दीपक और छोटी सुराही आदि थे…लेकर निकल चल पड़ीं थी अपनी ग्राहकी के लिए|
जी तोड़ मेहनत और लगन से रमुआ बड़ी मेहनत से मट्टी को आकार देता, सुखाता, भट्टी में पकाता और रंग रोगन कर तैय्यार कर देता और साँझ ढले थककर चूर हो अपनी खटिया पर पड़ा रहता..!
कावेरी दिन-भर गली-गली भटककर बेचती.. कभी बहुत लाभ मिल जाता और कभी लागत भी नही निकलती..!
“अम्माँ आपके पास मट्टी के दिए है क्या???”
पीछे से कावेरी को आवाज सुनाई दी..
“हाँ भैय्या कितने दे दूँ” बड़ी मेहनत से कावेरी ने सिर से टोकना नीचे रख दिया और कमर सीधी करने लगी..!
“अम्माँ कैसे दे रही हो दीपक??” “१० रू के दस” अम्माँ ने कहा.. “ठीक है..मुझे तो सारा टोकना चाहिए.. क्या मोल लोगी??”
कावेरी ने आश्चर्य से उस सुंदर से नौजवान को देखा और कहा
“आप जो देना चाहो.. बाबूजी बस शाम का नौन पानी हो जाए..२०० रूपये लगेगें और कहो तो २५रू और कम कर दूँगी.. !”
अपनी जेब से ५०० का नोट देते हुए नौ जवान बोला अम्माँ आज मेरा जनम दिन है तो पूरे मन्दिर में दीपक लगाऊँगा…
इसलिए यह पूरे पैसे आपके है बस मुझे आर्शिवाद दे दो की मैं अपने देश की रक्षा कर भारत माँ का सर सम्मान से ऊँचा कर सकूँ…!
कावेरी के दो हाथ उठे और उस नौ जवान सैनिक के सिर पर फिरा कर उसका माथा चूम लिया और कहा.. बेटा मेरी उमर भी तुम्हे लग जाए..
कहते ही कावेरी की आँखे छलक पड़ीं और दूर जाते नौजवान को देखती रही… सारे जीवन की कमाई का अनमोल लाभ जो मिला गया था…
नौजवान जहाँ खड़ा था वहाँ की माटी लेकर माथे से लगाकर कावेरी घर की और चल पड़ी….!!!!
क्या खूब लिखा है