
“राहुल मुझे एक बात बताओं, क्या मेरे आने के पहले भी मम्मी जी ऐसे ही करतीं थीं।”
कुछ महीनों पहले ही शादी के बंधन में बंधी सौम्या ने कहा।
“मतलब, क्या कहना चाहती हों सौम्या,साफ साफ बताओं।”
“मैं देखती हूं, जब भी हम मार्केट जाते हैं, मम्मीजी मेरे लिए कुछ लें न लें पर दीदी के लिए जरुर कुछ लेतीं हैं। मुझे बहुत चिड़ होती हैं ,यार वो इतने बड़े शहर में रहती है। फिर भी उनके लिए क्या जरूरत है हर चीज लेने की, और तो और भिजवाने की भी जल्दी…..”
“अच्छा भई ये बताओं तुम्हें कोई कमी तो नहीं हैं ना,वरना ये बंदा आपको अभी शापिंग पर लें जायेगा।”
राहुल ने बात को टालते हुए कहा
“नहीं नहीं मुझे कुछ नहीं चाहिए मम्मीजी मुझे भी सब कुछ लाकर देतीं हैं” हंसते हुए सौम्या ने कहा।
“सौम्या बेटा देखों,,,कौन आया है?” मम्मी जी ने आवाज लगाई
“हां मम्मी जी, अरे वाह, दीदी, सरप्राइज” खुश होकर दीदी के गले लगते हुए सौम्या ने कहा।
“हां भाभी सच कहती हूं, मुझे पहली बार मायके आने की बहुत जल्दी हो रहीं थीं, खास आपके लिए” दीदी की आंखों में खुशी के आंसू झलक पड़े थे बोलते हुए।
“अरे क्या हुआ दीदी ?”
“नहीं कुछ नहीं, बस आपको थैंक यू और दिल की गहराइयों से बहुत बहुत प्यार भाभी, आपके रुप में मुझे एक मां, बहन और सखी मिल गई हैं।”
अपनी भाभी का हाथ पकड़कर दीदी आगे बोली,
“भाभी आपका भेजा हर उपहार मेरे लिए अनमोल हैं, आपने मुझे हर त्यौहार पर याद करके मेरे सारे त्यौहारों का मजा दुगना कर दिया। अब आप चाहें कुछ भी उपहार न देना क्योंकि ये आपका प्यार जताने का तरीका था। भाभी मुझे ऐसे ही याद कर लिया करना, मेरे लिए यहीं उपहार से बढ़कर होगा।”
सौम्या को इतना प्यार और सम्मान पाकर खुशी से मन भर आया। उसे सब कुछ समझ में आ गया था।
वह अपनी मम्मीजी की ओर देखकर आंसुओं को रोक नहीं पा रहीं थीं। शायद आंसुओं से ही भावनाएं बह रही थी।
मम्मी जी भी दोनों को इस प्रकार देख अभिभूत हो रहीं थीं और ऐसा लग रहा था जैसे कोई बहुत बड़ी सफलता पा ली हों।