अन्न ब्रम्ह

कण कण की कीमत

मुनिया हैरान है !

मॉं और नानी गेहूँ छान रही हैं, साफ करने के बाद पिसवाएंगे।

उन्होंने थैला भर दिया, नानाजी बिखरे कुछ दाने बीन कर थैली में डाल रहे हैं—

पीछे गोदाम में बहुत सारी गेहूँ की बोरियाँ भरी हुई हैं–

वह माँ से पूछती हैं,

“माँ नानाजी गेहूँ का एक- एक दाना क्यों बीन रहे हैं?”

“बिटिया हमें कण- कण की कीमत समझनी चाहिए,

अन्न ब्रम्ह है ;

उसे उगाने में बहुत श्रम लगता है,

“माँ ने जवाब दिया।

मुनिया-“सच्ची माँ अन्न भगवान का रूप है?

फिर भी सब थाली में जूठन छोड़ते हैं क्यों ?”

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Image by Bruno /Germany from Pixabay

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About विभा भटोरे 10 Articles
श्रीमती विभा भटोरे, इंदौर स्नातकोत्तर -कार्बनिक रसायन शास्त्र (बी एड) अध्यन अध्यापन में विशेष रुचि। साहित्य सृजन का शौक है, निमाड़ी बोली संस्कृति और संस्कार के संरक्षण हेतु प्रयासरत।साझा संकलन शब्द समिधा प्रकाशित।
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