
मुनिया हैरान है !
मॉं और नानी गेहूँ छान रही हैं, साफ करने के बाद पिसवाएंगे।
उन्होंने थैला भर दिया, नानाजी बिखरे कुछ दाने बीन कर थैली में डाल रहे हैं—
पीछे गोदाम में बहुत सारी गेहूँ की बोरियाँ भरी हुई हैं–
वह माँ से पूछती हैं,
“माँ नानाजी गेहूँ का एक- एक दाना क्यों बीन रहे हैं?”
“बिटिया हमें कण- कण की कीमत समझनी चाहिए,
अन्न ब्रम्ह है ;
उसे उगाने में बहुत श्रम लगता है,
“माँ ने जवाब दिया।
मुनिया-“सच्ची माँ अन्न भगवान का रूप है?
फिर भी सब थाली में जूठन छोड़ते हैं क्यों ?”
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