
नन्ही सी वैष्णवी आज अत्यंत खुश थी। नवरात्रि का अंतिम दिन , उसे कन्या भोजन करने जो जाना था।
सुबह ही मम्मी ने नहला दिया, सुंदर सी फ्रॉक पहना दी झटपट प्यारा सा शृंगार कर हाथ में छोटा हैंड बैग ले वह अन्य सहेलियों के साथ कन्या भोजन के लिए चल दी।
जहाँ कन्या भोजन के लिए गई वहाँ कन्याओं को चौकी पर बैठाया गया उनका पूजन कर सिर पर माता रानी की चुनरी व कलाई पर कलावा बांधकर भोजन करवाया गया|
और अंत में एक, एक केला व दक्षिणा दे चरण-स्पर्श कर आशीर्वाद ले कन्याओं को अपने, अपने घर विदा किया।
देवी स्वरूप कन्याएँ अपने घर पहुंच गई, परंतु ये क्या नीरू अभी तक घर नहीं पहुँची , दोपहर से शाम हो गई ढूंढते हुए।
माता-पिता का रो रोकर बुरा हाल था।
पिता हताश हो जब पुलिस थाने जा रहे थे तो घर से कुछ ही दूरी पर देवी जी का मंदिर था|
वहाँ उन्हें नीरू के चप्पल और हैंड बैग मिला|
वे मंदिर में जब पीछे की ओर गये तो नीरू लहूलुहान व मृत अवस्था में पड़ी थी।
उस नन्ही सी पांच वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसे बुरी तरह से पत्थर से कुचल दिया गया था।
पिता बच्ची का शव गोद में लेकर बदहवास से रो रहे थे।
सभी कन्याएँ जब अपने, अपने घर चली गई तो उसे अकेला पाकर दरिंदा जिसे वह अंकल कहती थी और उसके घर के पास ही रहता था|
झूला झुलाने के बहाने ले गया और कुकर्म को अंजाम दिया।
हे माता रानी ये कैसा कन्या-पूजन था ?
कन्या-पूजन के दिन देवी (कन्या) वैष्णवी का किस दुर्गति के साथ विसर्जन कर दिया गया ।
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