
इन दिनों बहार का मौसम है,,नही समझे आप लोग अरे कॅरोना की बहार है,,,यूँ तो बहार का मौसम आता है और अपने निश्चित समय मे चला जाता है,,पर ये इतनी जबरदस्त बहार है कि लोग झाड़ू ले कर इसके पीछे पड़े है पर मजाल है जो टस से मस हो जाये।
ये अपने नए नए रूपों में उद्भससित हो रहा है। इसका तो वही हाल है,,
“छिपते छिपाते नही ,साफ नजर आते नही”पहले तो सिम्टम्स पता थे सूखी खांसी, बुखार, थकान,तो सब नजर रखे रहते थे,,,अब उसने चोला बदल लिया और हो गया “ए सिम्टमेटिक” लो हो गयी मुश्किल कर लो पता,,,, किसको है किसको नही है।
मेरे पड़ोस में हरेराम पटेल रहते है उनका लड़का दयाराम पंचायत ऑफिस में काम करता है,,,जमीन गांव में अच्छी खासी है और माता पिता आते जाते रहते है
पहले तो दादा खाँसते थे तो बेटा दयाराम और नाती पोते दौड़ के पानी ले आते थे, गला खराब हुआ तो गरारे कर लिए, अब दादा बिचारे बहुत परेशान है
खांसी आते ही सीधे बाथरूम जाते है और पहनी हुई धोती मुंह मे ठूंस के खांस खखार लेते है, बच्चों की गिद्ध दृष्टि लगी ही रहती है कि दादा खाँसे और चट एम्बुलेंस बुलायी जाय।
दादाजी के एक दोस्त थे सहज भोरे में उन्होंने बच्चों से कह दिया होगा कि बेटा हाँथ पांव एक दो दिन से बहुत दुख रहे है, थोड़ी हरारत भी है बेटा जी ने पट से गाडी बुलवाई और देख रेख, तीसरा, तिमाही, श्राद्ध, तर्पण, बहन, बेटी, नंदोई, जमाई, फूफा, सबकी आवभगत और रोने धोने से पल भर में निजात पा ली।
फोन से रोज पूछ लेते थे क्या हाल है,,, और समाज की भी बातों से भी छुट्टी पा ली,,,,मतलब गुजरे तो पिता और स्वर्गीय आनंद मिला पुत्र और पुत्रवधू को । बस उसी को याद कर आजकल पटेल दादा बहुत सावधान रहते है।
टी वी पर अस्पताल में भर्ती बुजुर्गों की सद्गति दुर्गति देखते देखते ही भय से रोम कूप ही नहीं सर के बाल तक खड़े हो जाते है,,,पहले तो अड़ोस पड़ोस में बच्चों को कोस भी लेते थे कि दो दिन से तबियत खराब है बेटा ध्यान ही नहीं देता है
अब सावधान रहते है कि कहीं बेटा को पता न चल जाये कि हरारत सी है। एक तो बाहर जाओ तो मुंह मे गाय ढोर की तरह टोपा चढ़ाओ किसी से बात न करो,,,,और ज्यादा हुआ तो एम्बुलेंस खड़ी कर देंगे,,,,,।
बाजी तब पलटी जब दयाराम हरिराम दादा का लड़का पंचायत ऑफिस से आया और तेज बुखार आ गया,,,दादा चुपचाप खटिया पे बैठे बैठे लोगों की बातें सुन रहे थे 3 दिन तो चुपचाप दवाई गोली कभी केमिस्ट से कभी डॉक्टर से पूछ के खाता रहा बेटा उनका ,,जब सांस लेते ही नही बनी तो मजबूरन अस्पताल में भर्ती हुआ वही एम्बुलेंस आई जिसकी पटेल दादा के लिए कल्पना की थी।
अस्पताल तो उनके साथ भी कोई जा नही सकता था। आज सुबह देखा तो दादा झक सफेद धोती पहिने टीका लगाए बरामदे में खटिया पे बैठे थे।
सड़क पे हमे देखते ही लपक के आये हम और 10 कदम पीछे हो लिए सोचा क्या भरोसा ?? हाँथ ही कंधे पे रख दिया तो क्या कर लेंगे? कॅरोना वाला घर है
अब ऐसी ही पहचान हो गयी थी घरों की भी ये कॅरोना वाला घर है ।फोन पे भी गॉसिप का सब्जेक्ट ही बदल गया था
महिलाएं कहती क्यों कितने है बुजुर्ग तुम्हारे यहां? दूसरी कहती ,है तो एक ही, पर सुनते कहाँ है??
गए थे परसों चुपचाप मन्दिर बस देख लेना जरा भी छींके नहीं कि झट अस्पताल भेज दूंगी।
पर पर इधर तो पटेल दादा की कहानी ही दूसरी थी।
दादा तो खुशी से छलके पड़ रहे थे ,हाँथ हिला के बोले बिटिया हम निगेटिव आये गए है
और झुर्रियों में मुस्कुरा के बोले, बिटवा गया है एम्बुलेंस में!