
एक छोटे से गांव के बाहर एक पहाड़ी थी और उसके आसपास खाली जमीन भी थी।
उसी गांव में एक कलाकार रहता था।
उसकी कला बहुत ही रचनात्मक और सृजनात्मक थी।
एक बार वो कलाकार उस पहाड़ी के नीचे जमीन पर पत्थर से मूर्तियां बनाने का काम करने लगा।
कलाकार मूर्तियां बहुत सुंदर बनाने लगा।
धीरे -धीरे सभी दूर तक उसकी कला की बहुत तारीफ होने लगी और कुछ ही दिनों में कुछ पैसे भी इकठ्ठा होने लगा।
पैसा इकट्ठा कर वहाँ एक मंदिर का निर्माण हो गया।
मंदिर में सुंदर- सुंदर मूर्तियां स्थापित की गई।
धीरे- धीरे वह स्थान धार्मिक स्थल बन गया।
वहाँ सभी लोगों ने अपने काम शुरू कर दिये, जैसे टैक्सी दुकानें,
और अनेकों लोगों को काम मिल गया।
कुछ वर्षों बाद वो कलाकार बीमार हो गया,
डाक्टर ने कहा कि कोई जानलेवा रोग है ,आपके पास समय कम है।
कलाकार ने सोचा सब कुछ अच्छा चल रहा फिर ,सोचते हुए
उसने भगवान को ताना दिया और कहा कि,
‘ मैंने आपकी इतनी सेवा की और आपने क्या किया?’
इस पर भगवान बोले-
‘जब तुम्हारे पास एक बालक खाना मांगने आया, तुमने उसे मना कर दिया।
एक मां अपने बच्चों के साथ बारिश में रात को मंदिर में आईं तो उसे कहा कि,’ मंदिर बन्द कर दिया है।’
कुछ लोग स्कूल के बच्चों के लिए पैसा इकट्ठा करने आए तो तुमने कहा सरकार से मांग करो।
तुमने जिसे जरूरत थी ,उनको कोई मदद नहीं की।
इतने बुरे कर्म करने के बाद मुझे उलहाना दें रहे हो।
तुम्हारे कर्मों का फल तो मिलेगा
और वह तूम्हें भोगना पड़ेगा,
इसलिए जैसा कर्म वैसा फल।
वो फल अच्छा हो या बुरा
वो हमारे कर्मों पर निर्भर करता है।