
मेरी महरी नीलू अक्सर अपनी नन्हीं बेटी बेला को साथ ले आती थी।
मैं बेला को बहुत कुछ खाने, पीने को दे देती, अपने बच्चों के पुराने कपड़े, खिलौने आदि सभी कुछ देती|
किन्तु मन में कहीं न कहीं यह भावना आ जाती कि ये छोटे लोग हैं, गन्दे रहते हैं।
अत: मैंने उस बच्ची की थाली व गिलास अलग रख दिये और हमेशा उसी में खाना देती थी।
एक दिन मैंने नीलू से कहा तू इसे स्कूल क्यों नहीं भेजती , मैंने उसे कुछ पुस्तकें दी।
बेला खुश हो गई । कुछ समय पश्चात नीलू पता नहीं कहाँ चली गई ।
मैंने दूसरी काम वाली रख ली।
मेरे दोनों बच्चे अच्छे पढ़ लिखकर विदेश में नौकरी करने लगे और परिवार सहित वहीं पर रहने लगे।
हम दोनों पति, पत्नी शापिंग के लिए पैदल जा रहे थे कि
एक गाड़ी ने मुझे टक्कर मार दी , सड़क उस पार एक क्लिनिक था ,
मेरे पति कुछ लोगों की सहायता से आटो में वहां ले गए।
खून काफी बह चुका था, अतः ब्लड की जरूरत थी|
जो डाक्टर मेरा इलाज कर रही थी, उसका और मेरा ब्लड ग्रुप एक ही था।
उसने अपना खून देकर मेरी जान बचाई,
जब मुझे होश आया तो वही साधारण सी दिखने वाली और शालीन सी डाक्टर मेरे पास खड़ी पूछ रही थी,
अब कैसा लग रहा आंटीजी ?
आपने मुझे पहचाना नहीं?
मैं बेला …
मैं अपलक उसे निहार रही थी ,
मेरे मुँह से बरबस ही निकल गया,
“बेटी”,
अब तो उसका और मेरा खून का रिश्ता बन गया था।
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