
—– देश के लिए फर्ज़ —–
दोपहर 2 बजे थे, शीला जल्दी जल्दी टिफ़िन मे खाना रखती जा रही थी |
चार साल की बेटी परी हर रोज़ माँ को इसी समय टिफिन मे खाना रखते हुए देखती रहती थी |
आखिर उसके सब्र का बाँध टूट ही गया |
उसने पूछा “मम्मी यह रोज़ खाना किसके लिए लेकर जाती हो |”
शीला ने अनसुना कर दिया |
“बताओ न मम्मी |” साड़ी का पल्लु झकझोडते हुए पूछा !
“कुछ नहीं बेटा |”
“नहीं-नहीं मुझे बताओ ! आप यह टिफ़िन किसे देती हो ?
और पापा कहाँ है ? वह घर क्यों नहीं आते है ? कितने दिन हो गये है ?
मैंने उनसे चॉकलेट के लिए कहा था वो भी नहीं लाये |
“बताओ —-न मम्मी ! पापा मुझसे नाराज हो गये है |
मैंने उनसे चॉकलेट माँगी इसलिए !
दोनों कान पकड़कर , मै पापा से सॉरी बोल दूँगी |”
परी रोती जा रही थी —–|
“मम्मी –पापा को बुला दो न —-|”
शीला की आँखो में आँसू झलक आये |
“नहीं बेटा | पापा तुमसे नाराज नहीं हैं |
वे तो अपने देश के लिए फर्ज़ निभा रहे हैं |
उन्हीं के लिए यह टिफ़िन भेज रही हूँ |”
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