निकम्मा

निकम्मा राजू


राजू का बचपन से ही पढ़ाई में मन नहीं लगता था।

घर में जब भी पढ़ने की बात चलती, एकदम चुप बैठ जाता।

डांट पड़ने पर एक कान से सुनता, दूसरे कान से अनसुनी कर निकाल देता।

माता पिता को उसका भविष्य दिखाई दे रहा था।

पिता ने उसे दोस्त की दुकान पर काम करने के लिए बैठाया ,जैसे तैसे करके वह अपना जेब खर्चा निकाल लेता था।

घर के सभी भाई-बहन भी उसकी हंसी ठिठोली किया करते ,और अपने सारे काम उससे निकलवा लेते।

राजू किसी के काम का कभी मना नहीं करता।

माता-पिता को हर दिन उसकी चिंता खाए जा रही थी ।

भविष्य में राजू कैसे रहेगा!

हमेशा माता-पिता राजू के भविष्य की ही बात विचार किया करते।

अभी कुछ दिनों से पिता की सेहत भी ठीक नहीं थी ।

राजू की माता उसके पिता के कामकाज उनकी देखभाल में लगी रहती।

घर के सभी सदस्य अपने- अपने कामों में व्यस्त रहते ।

एक दिन पिता की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब लग रही थी।

तब राजू को लेकर मां उसके पिता को डॉक्टर को दिखाने के लिए अस्पताल ले गई ।

अस्पताल में डॉक्टर ने पिता की जांच के दौरान बताया,

कि उनकी किडनी ठीक तरह से काम नहीं कर रही है,

और धीरे-धीरे पिता को किडनी में संक्रमण बढ़ता ही जा रहा था।

और हर दिन इलाज का खर्चा भी बहुत अधिक हो रहा था।

राजू पिता की देखभाल करता, और नौकरी भी नियमित करता।

एक दिन डॉक्टर ने ज्यादा तबीयत खराब होने की स्थिति में

मां से किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में सलाह मशवरा किया।

मां ने सभी बच्चों से भी पिता की किडनी ट्रांसप्लांट की चर्चा की।

दुखी मां जब राजू को खाना परोस रही थी,

राजू ने मां से पूछा, मां ने राजू को बताना व्यर्थ ही समझा।

रात को जब राजू कमरे में सोने सोने गया ।

छोटी भाभी का बेटा जो राजू के साथ मस्ती करता ,सो जाता, खेलता रहता

आकर राजू को बातों ही बातों में पिताजी के किडनी के ट्रांसप्लांट की घर में हो रही चर्चा के बारे में बताया।

दूसरे दिन पिताजी की ज्यादा तबीयत खराब होने पर

सभी भाई, भाभी फोन पर संदेश के द्वारा किडनी डोनेट करने वाल़ों से किडनी डोनेशन की मांग करने लगे ,

उनसे फोन परामर्श कर रहे थे, और दानदाता की जानकारी भी निकाल रहे थे।

तभी डॉक्टर ने कहा ,हमें एक दानदाता मिल गया है ,जो अपनी किडनी देना चाहता है ।

पिताजी को ऑपरेशन टेबल पर दानदाता के द्वारा दी गई किडनी लगा दी गई।

अब पिता की हालत में सुधार आने पर अस्पताल में नियमित जांच के दौरान डॉक्टर जब आए ।

तब पिताजी ने उनसे चर्चा की और पूछा -कि मुझे किस ने अपनी किडनी दान की?

डॉक्टर ने तुरंत कहा कि आपका बेटा सचमुच का इंसान है

जिसने आपकी जान बचाई, और उसी ने आपको भी बचाया आपके बेटे ने ही आपको किडनी दान की है।

अब पिताजी बहुत स्तब्ध थे।

पिताजी की अस्पताल से छुट्टी हो चुकी थीं।

पिताजी ने अपने जीवन में अपने वसीयत का वारिस चुन लिया था।

निकम्मे राजू को पिता ने आंखों से आंसू भरते हुए गले लगा लिया।

पिता बोल रहे थे – तू तो बहुत बड़ा निकम्मा निकला रे।

आज राजू ने घर के सभी सदस्यों को अपनी घर में उपस्थिति का एहसास दिलाया था

और पिता को किडनी दान करके परिवार में अपने लगे हुए निकम्मे होने का टैग से मुक्त करा लिया।

निकम्मा अब घर में सभी की आंखों का तारा बन चुका था।

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Photo by Juan Pablo Serrano Arenas from Pexels

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About पूर्णिमा मलतारे 7 Articles
पूर्णिमा मलतारे शिक्षा : बीएससी (विज्ञान), एम. ए., डी. एड., सर्टीफिकेट इन कंप्यूटर एप्लीकेशन व्यवसाय: शिक्षण रूचि: लेखन , नृत्य , पेंटिंग , कुकिंग
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