निशब्द

निशब्द

—- निशब्द —-

आज वह फिर जल्दी जाग गई आशा क्योंकि एक उम्मीद की किरण लिए ही वह कहीं अरसे से इस पल का इंतजार कर रही थी

आज उसके बेटे को बहुत संघर्ष के बाद एक अधिकारी पद पर नौकरी मिलने वाली थी

और उसे लगा शायद मेरा संघर्ष आज खत्म हो जाएगा मेरा बेटा लायक़ बन गया

जल्दी से उसने अपनी दिनचर्या का कार्य पूरा किया और बेटे के लिए कुछ मीठा बनाने रसोई घर में चली गई और बीती बातें सोचने लगी

आजीवन संघर्ष कर आज वह अपने बेटे को अधिकारी रूप में देखेगी

और सोचने लगी शायद उसके पिता होते तो कितना खुश होते, अतीत में जा चुकी थी , निशब्द !

इतने में बेटे ने आवाज लगाई, मां फिर वर्तमान में लौट आई और बोली

तुम जल्दी तैयार हो जाओ आज पहला दिन है समय पर जाना होगा अपना काम इमानदारी से करना

किसी को शिकायत का मौका ना देना अपने संस्कार अपने स्वभाव में रखना रिश्वत से कोसों दूर रहना

एक माँ ने अपने बेटे को उम्र के इस दौर में भी यही शिक्षा दी

इसी तरह बेटा अपने कार्यालय पहुंचा उसका बहुत स्वागत किया गया

और इसी तरह वह दिन गुजरते गए मां बहुत खुश रहती

2 वर्ष बाद एक समभ्रात परिवार से उसके लिए रिश्ता आया लड़की बहुत सुंदर थी

और मां को अपने बेटे की पसंद पर कोई इंकार नहीं था

दोनों की शादी हो गई सुकून से जीवन बिता रहे थे

कुछ समय बाद ही अचानक बेटे की तबीयत खराब हो गई

और ऑफिस से फोन आया तत्काल अस्पताल में भर्ती किया गया

अस्पताल में पहले ही काउंटर पर लाखों रुपए जमा करवाए गए

तत्पश्चात इलाज शुरू हुआ

मां और बहू हॉस्पिटल में दिन रात बैठे रहे दुआ करते रहे जिंदगी मिल जाए

लेकिन जिंदगी पल-पल की लाखों रुपए मांग रही थी

पैसे से मोह नहीं था बेटा चाहिए था और अचानक एक दिन हॉस्पिटल मैं बोला जाता है

आपका बेटा कोमा में है पता ही नहीं चला क्या बीमारी थी

लाखों रुपया खर्च करके भी बेटे से आखरी दो शब्द ना सुन सके

और हॉस्पिटल में डॉक्टरों द्वारा कहा गया सॉरी माता जी आपका बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा

और हम आप को उसकी बॉडी नहीं दे सकते शायद उसे करोना था

लाखों रुपए लेकर भी मेरे बेटे को नहीं बचाया पत्नी और मां बिलख कर रोने लगी मां के मुंह से निकला उसके शव को मुझे ना दिया

उसे भी बेच दिया उन के यह शब्द सुन कर सिक्योरिटी गार्ड को बुलाया जाता है

और उन्हें बाहर करने का कहा जाता है

उस निशब्द मां को किसी का सहारा भी नहीं रहा क्या हुआ होगा

मेरे बेटे के साथ क्या सच में करोना था या उसके शरीर के अंगो का कहीं सौदा होना था

जागी पलकों में यही सोचकर उसने कहीं राते बिता दी।

और कहानियाँ पढ़ें : हिंदी लघुकथा

Photo by Marcelo Leal on Unsplash

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About सरिता अजय साकल्ले 28 Articles
श्रीमती सरिता अजय जी साकल्ले इंदौर मध्य प्रदेश
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