
रम्या ने अपने चेहरे को मास्क एवं स्कार्फ से ढक लिया था।
रेलवे प्लेटफार्म पर बैठे हुए उसे लगभग दो घंटे हो चुके थे।
उसकी घबराई हुई नज़रे मानों दसों दिशाओं में चक्कर लगा रही हो।
साथ ही एक छोटा सा एअर बेग ,जिसे पेट से एकदम सटा कर रखा हुआ है।
मुम्बई की ट्रेन भी निकल चुकी थी।
राजन अब तक क्यों नहीं आया ….
रम्या सोचते हुए खड़ी हो गई। बार-बार मोबाइल पर निगाहें जा रही थी।
तभी राजन का मैसेज आया
‘ रम्या! माफ करना मुझे, बहुत सोचा फिर यह निर्णय लिया कि आज के समय में इस तरह की नौकरी मिलना मुश्किल है।रम्या तुम भी घर लौट जाओ …।’
रम्या को लग रहा था कि वह अपना ही मुँह नोंच ले या मोबाइल फेंक दे..।
पर वह कुछ ना कर सकी, ऑटो में बैठकर घर आ गई ।
घर पर शहनाई का शोर सा लग रहा था, क्यों कि आज रम्या के मन में सन्नाटा जो था।
‘आ गई पार्लर से’ मम्मी ने पूछा।
निरुत्तर सी रम्या… मम्मी के गले लग कर फूट- फूटकर रोने लगी…। वह अपने प्यार से ही ठगी गई है ..चीख चीख कर बताना चाहती है सबको ..पर उसके अंदर तो मौन पूरी तरह पसर गया था।
तभी उसकी मौसी ने समझाया ‘बेटा रम्या! यह तो रीत है रे… ससुराल तो जाना ही पड़ता है ,
‘ इस घर में जो तेरा बीज बोया था उसमें अंकुरण निकल आया है ,अब इसे कहीं ओर की हवा ना लगे उसके पहले जड़ सहित तेरे ससुराल में रोपित करना है।जिससे वहां तू फिर हरी भरी होकर खुश रह सके।
रम्या अब भी सुबक -सुबक कर रो रही थीं।
तभी ‘बारात आ गई,बारात आ गई’ का उत्साहित स्वर कानों में पड़ा। जैसे लम्बी नींद से जागी हो रम्या….।
सोच रही थीं…
प्रणय बंधन में बांधने वाले ने तो ठुकरा दिया, अब परिणय बंधन में बंधने की बेला आई….
हां गोधूलि बेला आई …..
” वर वधू को मण्डप में लाइये…….”
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बहुत ही सुंदर बनी है शब्दबोध
Beautiful lines
बहुत बढ़िया लघुकथा।शब्दबोध पत्रिका बहुत बढ़िया है।
बहुत ही अच्छा प्रयास .. आरोग्यम और जीवन शैली खंड पढ़कर अच्छा लगा ..
बहुत सुंदर संदेश
आप सभी का आभार,🙏🙏🙏