
“ये क्या किया शंकर तुमने,
मकान बेचकर तीस लाख बेटे के हाथ में रख दिए! इतना भरोसा ठीक नहीं औलाद पे ।”
दोस्तो की बातें याद आ रही थी।
आज भी बेटे ने नए मकान का सौदा नहीं किया,
पूछने पर बोला “मुझे तो लोन मिलेगा नहीं, और सीमा के लोन में वक़्त लगेगा।”
शंकर आंखो में आंसू भर अखबार पढ़ने का अभिनय करते रहे थे।
पंद्रह दिन में नया मकान लेने की बात की थी, आज दो महीने हो गए ।
आज उन्होंने कहा “वो जो पहले देखा था वो क्यों नहीं नक्की करते हो, अच्छा था वो तो?”
“हाँ बाबूजी वो अच्छा था पर, वहाँ आसपास मंदिर नहीं दुकान नहीं चौराहा पार करना पड़ता।
अभी जो देख रहे हैं वो बहुत अच्छा है ,
आपके और माँ के लिए, मन्दिर दुकान गार्डन सब पास में ही है,
सीमा और मुझे बहुत पसन्द आया,
आपको कोई असुविधा नहीं होगी।”
सुनकर शंकर की आँखों से आंसू बहने लगे,
आशीर्वाद देते हुए बोले
“तुम पर पूरा भरोसा है, तुम्हारे रहते मुझे कोई चिंता नहीं ।”
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