
आशा अपनी दोनो बेटियों के खेल रही थी। तभी शर्मा आंटी आई और तिरछी मुस्कान के साथ बोली
“खूब मस्ती हो रही है बेटियों के साथ।”
आशा ने कुर्सी देकर उन्हें बैठने को कहा
“अब फटाफट एक बेटा भी कर ले ताकि परिवार पूरा हो जाए।” शर्मा आंटी बैठते से बोली।
“मेरी ये दो बेटियां ही काफी हैं, हमारा परिवार पूरा हो गया आंटीजी। आप के लिए क्या बनाऊं चाय या कुछ ठंडा?”
आशा ने बात का रुख बदला।
“अरे कैसे नासमझ वाली बात करती है! धर्म शास्त्र में लिखा है, बेटे के हाथ पिंड न हो तो मोक्ष नही मिलता। बेटा आग देगा तभी मुक्ति मिलेगी।”
“अच्छा तो आपने चिता जलने के बाद की दुनिया देख ली है आंटीजी? क्या आप को पता है मरने के बाद क्या होता है? मतलब जिनकी संतान ही न हो उन्हे मरना नहीं चाहिए ? और बेटा न हुआ तो उन्हे तो मरने का अधिकार ही नहीं ?”
आशा के चेहरे पर अब भी मुस्कान थी पर आंटी का चेहरा सफ़ेद पड़ रहा था।
“अरे तुझे मालूम नहीं, पूर्वजों का ऋण रहता है पुत्र पर उसे दुनिया में लाने का। जब तक पुत्र किर्याक्रम नही करता ,तब तक मोक्ष नही मिलता”
आंटी आवाज तेज़ कर के बोली।
“अच्छा तो पुत्री पर ऋण नही होता? वो भी तो पूर्वजों द्वारा ही संसार में आई है?”
आशा ने तुरंत पूछा।
आंटी के तो गले में ही थूक अटक गया, कुछ बोल नहीं पाई।