
शीर्षक: प्रवासी की व्यथा
“बेटा जल्दी किसी तरह भारत आ जाओ”
माँ की थरथर्रायी आवाज़ फ़ोन पर आई
“माँ क्या हुआ ? आप घबरायी हुई क्यों हो ? ”
“बेटा पिता का एक्सीडेंट हो गया, ट्रक ने टक्कर मार दी, सर पर चोट आई है ।”
“माँ आपके पास कौन है । ”
निखिल ने घबराये हुए पूछा ।
माँ ने जवाब दिया –
“सारा परिवार है
चाचा, बुआ, मामा, मासी।
ऑपरेशन चल रहा है,
ब्रेन का ऑपरेशन है
कुछ पता नहीं क्या होगा, तुम आ जाओ”
पिता का चेहरा निखिल के आँखों के आगे घूमने लगा,
पत्नी भी भौचक्की खड़ी थी
परन्तु कुछ सहज होकर निखिल को आश्वासन दिया
“सब ठीक हो जाएगा ।”
किसी तरह भागदौड़ के बाद भारत पहुंच गए।
डॉक्टरों की कतार लगी थी,
“अभी तक होश नहीं आया ५ दिन हो चले, कोमा में है ”
चाचाजी ने कंधे पर हाथ रखते हुए बताया।
निखिल पापा का हाथ थामे घंटो पापा के सिरहाने बैठा रहता
कानों में पापा- पापा बोलता
पर, कोई प्रतिक्रिया नहीं।
धीमे-धीमे रिश्तेदारों की आवाजें कानों में सुनाई देती
” बचने की संभावना कम है ।”
निखिल सिहर उठता।
“माँ की हालत देखी नहीं जा रही थी।
कुछ समझ नहीं आ रहा पापा जो हुष्ट पुष्ट और इतने बड़े व्यापार को सँभालते थे ,आज इस अवस्था में ”
तभी पत्नी की आवाज और कोमल स्पर्श ने तंद्रा भंग कर दी।
“ज्यादा परेशान न होए, चलिए एक कप कॉफ़ी कैंटीन में पीते है।”
हताश, निराश चुपचाप वह पत्नी के साथ काफी पीने कैंटीन में टेबल पर बैठ गया।
पत्नी ने ही ख़ामोशी तोड़ी,
“सुनिए आज १५ दिन से ऊपर हो गए है, पापाजी को होश नहीं आया।
डॉक्टर कह रहे है ६ माह भी लग सकते है,
हम कब तक यहाँ बैठे रहेंगे कंपनी को क्या जवाब दे ।”
निखिल एकटक पत्नी को देखता रह गया।
तभी बाहर से मौसी दौड़ते हुए आई
“बेटा जल्दी चल पापा______”
कई जतन किए पर डॉक्टर पापा की टूटती सांसो की नहीं बांध सके।
४ दिन में क्रियाकर्म भी पूरे हो गए ।
निखिल का तो मानो सारा खून ही निचोड़ लिया गया हो ।
सोचा भी न था इतनी जल्दी पिता की छत्र-छाया सर से उठ जाएगी।
पत्नी का स्नेह अब कटाक्ष में बदल गया
“ऑस्ट्रेलिया चले या यही श्रवणकुमार बनकर रहना है ।”
निखिल की चुप्पी के पीछे का भेद जान गई थी।
वह गुस्से में बोली में जा रही हूँ,
“आप आजाए मैं भारत में नहीं रहूंगी, वर्ना तलाक के कागज पर साइन कर देना।”
दो माह बाद ही तलाक के कागज निखिल के पास आ गए।
निखिल तलाक के कागजों पर बंधा साइन करते हुए सोच रहा था ।
“यह रिश्ता सिर्फ स्थान की डोर से बंधा था, जो स्थान परिवर्तन होते ही टूट गया ।
क्या रामायण में यह सत्य लिखा है सीता राम के साथ वनवास गई थी ?”
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