
रेवती के बापू ने अपने समाज की प्रथा के अनुरूप, यह निर्णय लिया था, कि बेटी की शादी के बदले में पच्चीस हजार रुपये लूंगा।
रेवती और बालू, दोनो का बचपन साथ साथ बीता।
साथ में खेले, स्कूल गये,
स्कूल क्या, रेवती तो प्राथमिक तक की पढ़ाई भी न कर पाई और बापू ने पढ़ाई छुड़वा दी,
क्योंकि माँ के बीमार रहते घर के काम का हर्ज हो रहा था।
साधारण परिवार, खेती किसानी पर पलने वाला।
उधर बालू का परिवार भी खेतिहर ही था।
अकेली सन्तान होने से बालू के बापू ने उसकी पढ़ाई जारी रखी।
दोनो के घर पास पास ही थे, आंगन एक ही था।
स्कूल से आकर बालू, और घर का काम निपटा कर रेवती, बाहर आंगन में आपस में मिल बैठ कर गप्पे मारते,
अपने मनपसंद खेल खेलते, कभी कभी दोनो अपने अपने बापू के लिये खेत में खाना ले जाते।
दिन भर खेलते, खाते, अमराई में कच्ची पक्की अमियाँ तोड़ते खाते, और शाम को वापस आते।
दोनो का बचपन साथ साथ गुजर रहा था।
समय गुजरते देर नही लगती।
दोनो बड़े हो रहे थे ग्यारहवीं की परीक्षा दी ही थी कि
बालू के पिता को एक दिन खेत में ही दिल का दौरा पड़ा और वो चल बसे।
घर और माँ की जवाबदारी के चलते बालू को पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी।
अब खेत को सम्हालने की जिम्मेदारी भी उसी की थी।
रेवती के बापू भी रेवती की शादी कर देना चाहता था।
दबी ज़ुबान से बालू की माँ ने कई बार रेवती के बापू को यह बताने की कोशिश की थी
कि दोनों बच्चे एक दूसरे को चाहते है,
क्योंकि वह जानती थी इन दोनों के मन की बात।
लेकिन रेवती के बापू ने अपने समाज की प्रथा के अनुरूप, यह निर्णय लिया था
कि बेटी की शादी के बदले में पच्चीस हजार रुपये लूंगा।
बालू की माँ इतने रुपये कहाँ से लाती, बालू ने अपनी माँ से कहा कि मैं शहर जाकर कमाऊंगा और जल्द ही लौटूंगा।
जाने की तैयारी कि और रेवती के घर जाकर उसके बापू से कहा कि
मैं छह महीनों में पैसे लेकर आऊंगा और रेवती से शादी करूंगा, मेरा इंतजार करना।
रेवती के बापू ने भी मान लिया और कहा कि देर हुई तो शादी कर दूंगा।
रेवती से भी विदा लेकर बालू चल दिया।
शहर में जो भी काम मिला किया, एक ही धुन सवार थी कि किसी भी तरीके से पच्चीस हजार इकट्ठे करना है।
कभी खाना खाया कभी भूखे ही सो गये, कभी नाश्ता ही किया, कभी छत मिली, कभी फुटपाथ पर ही आराम किया।
उधर रेवती भी खुशी खुशी काम करती और अपने सुनहरे भविष्य के सपने बुनती और बालू का इंतजार करते दिन गिन रही थी छह माह हो गये थे।
कभी कभी उसका दिल बैठने लगता था कि बालू नही ला पाया इतने पैसे तो??
इधर बालू भी अपने सेठ के पास गया कि मेरा हिसाब कर दो छह महीने हो गये है
और मुझे पैसे दे दो सेठ ने बताया कि अभी पन्द्रह दिन और काम करना पड़ेगा तब तुम्हारा हिसाब हो पायेगा।
यह सोचकर कि थोड़े दिन उपर होने से कोई फर्क नही पड़ेगा रेवती और उसके बापू मेरा रास्ता ज़रूर देखेंगे।
लेकिन एक दिन रेवती क्या देखती है कि एक दिन एक व्यक्ति आया और उसके बापू को एक थैली देकर चला गया,
और बापू को मां से बात करते सुना कि तीन दिन बाद रेवती की शादी है।
रेवती माँ, बापू के सामने रोई, गिड़गिड़ाई, हाथ जोड़कर याचना कि की बालू जल्द ही आ जायेगा।
लेकिन उसके बापू ने एक नही सुनी और कह दिया कि
उसका क्या भरोसा, अभी तक कोई खबर भी नहीं दी है।
रेवती की शादी वाला दिन भी आ गया।
उसे मालूम हुआ कि उसका होने वाला पति विधुर है।
ईश्वर की इच्छा के आगे किसी का बस नही चलता।
पन्द्रह दिन और काम करके पूरे पैसे लिये और ख़ुशी ख़ुशी बालू गांव चल दिया।
रेवती से शादी के सपने देखते हुए, अपने गांव के बाहर एक बारात जाती देखकर सोचने लगा कि किसकी शादी हुई होगी
छोटा गांव होने के कारण लगभग पूरा गांव ही परिचित था,
पास आने पर बैलगाड़ी में बैठी दुल्हन को देखकर तो हाथों से रुपए की पोटली छूटकर गिर पड़ी।
रेवती थी जो उसे भीगी आँखों से देखती जा रही थी, गाड़ी आगे बढ़ गई बालू वही बैठ गया।
घर पहुँचा उदास, कुछ नहीं बोला।
मां समझ गई कि बेटे को सब पता चल गया है पैसे की पोटली रख दी माँ से कहा कि ये पैसे मेरी किस्मत के नही है।
कुछ दिन बीते उसने निर्णय लिया कि अब गांव में नहीं रहेगा, सारा सामान सहेजा और शहर को चल दिया।
शहर में एक स्कूल में प्यून की जगह मिल गई अब वह माँ के साथ वही रह रहा था ।
कुछ साल बीते।
एक दिन उसने देखा कि प्रिंसिपल के रूम में एक जोड़ा अपने बच्चे के एडमिशन के लिये आया था
और प्रिंसिपल से हाथ जोड़कर विनय कर रहा था कि हम हमारे बच्चे को शहरके अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहते है,
और सारा पैसा हम कुछ दिनों में जमा कर देंगे।
आप हमारे बेटे को एडमिशन दे दीजिये, प्रिंसिपल ने कहा पच्चीस हजार जमा करवाना,
और किसी की पहचान लाना अनिवार्य है।
इतना सुनकर बालू पास ही अपने घर गया और वही पच्चीस हजार रुपये जमा करवा दिये
और प्रिंसिपल से कहा कि बच्चे को एडमिशन दे दीजिये, इनकी जवाबदारी मैं लेता हूँ,
रेवती कृतज्ञता भरी नजरों से बालू को देख रही थी।
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