
मैंने ही इन्हें गाँव से बुलाकर मुसीबत मोल ले ली, किस घड़ी में इन्हें दया करके यहाँ ले आई ।
इन शब्दों को बड़बड़ाते हुए अनीता पैर पटक रही थी।
दरअसल बात यह थी कि
अनीता के पति अनिल के चाचाजी जो कि गाँव में रहते थे
उनकी मृत्यु के उपरांत बेसहारा चाचीजी को अनीता की जिद पर अपने साथ घर ले आये थे ।
चाचीजी बहुत सीधी सादी थी ,
दो वक्त की रोटी खाती ,
पास पड़ोस की महिलाओं के साथ मंदिर दर्शन करती
और प्रत्येक एकादशी को घर पर भजन कीर्तन करवाती ।
जब बहू अनीता ने बेटी को जन्म दिया तब भी उन्होंने अच्छे से सार सम्भाल की ।
अब वही चाची बूढ़ी हो जाने के कारण अनीता को फूटी आँख नहीं सुहा रही थी।
अनिल से कहती मुझसे इनकी सेवा नहीं होती,
मैं मुन्नी को सम्हालूँ या इन्हें देखूं तुम तो आफिस चले जाते हो,
मैं अकेली क्या क्या करूँ ,
इस महंगाई के चलते इनकी दवाइयों का खर्च भी बढ़ गया है,
कुछ भी हो जाये तुम तो इन्हें गाँव छोड़कर आओ|
अनिल ने उसे लाख समझाया पर वो जिद पर अड़ी रही,
अनिल ने कहा मैं टूर से आकर कुछ करता हूँ।
रविवार का दिन था ,
अनीता घर की साफ सफाई मे लगी हुई थी ,
मुन्नी चाचीजी के पास खेल रही थी ,
इतने में डोर बेल बजती है ।
अनीता दरवाजा खोल कर देखती है तो माली आया हुआ रहता है ,
वह नमस्कार कर कहता है
“बीबीजी, साहेब ने कहा था ,घर का बगीचा और लान को ठीक कर जाना आज छुट्टी थी तो सोचा आज कर देता हूँ।”
अनीता उसे बगीचे में ले जाकर निर्देश देती है कि
“घास बहुत बढ़ गई है ,गुलाब और दूसरे सभी पौधों की छटाई कर दो”
“जी बीबीजी”
कहकर माली खुरपी निकालकर अपने काम मे जुट जाता है।
करीब एक घंटे के बाद अनीता माली के लिए चाय बनाकर बाहर आती है
तो बगीचे को देखकर खुश हो जाती है ,
माली ने पूरे लॉन और बगीचे की कायापलट दी थी ।
पौधों के आसपास सुंदर क्यारियां बना दी थी,
पौधों की छटाई हो जाने से उनका रूप और निखर आया था।
पगडण्डी के आसपास गमलों को लाईन से व्यवस्थित लगा दिया था,
पौधों की निदाई गुड़ाई कर खाद भी डाल दी थी , काफी मेहनत कि थी माली ने ।
बगीचे को निहारते हुए जब अनीता आगे बढ़ी तो अचानक एक पेड़ को देखकर कहने लगी
“ये क्या भैया मैंने पिछली बार भी आपको इस पेड़ को काटने को कहा था, इस बार भी आपने आलस दिखा दिया ।”
माली ने कहा :
“मैं आलसी नहीं हूँ बीबीजी,
मैं आज इस पेड़ को काट देता
पर जैसे ही मैंने कुल्हाड़ी उठाई ऐसा लगा इस पेड़ ने मेरे हाथ पकड़ लिए हैं
और कह रहा है कि पुराना हूँ तो क्या हुआ,
माना कि फल फूल नहीं देता ,
लेकिन इस बगीचे और लॉन को कड़ी धूप से तो बचाता हूँ ,
कुछ साल बाद कमजोर होकर मैं खुद ही गिर जाऊँगा ।
माली आगे भी कुछ कह रहा था
पर अनीता को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था
उसकी आँखों से अश्रु धार बहे जा रही थी
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बहुत मार्मिक