भलाई का जमाना है

भलाई का जमाना

महाविद्यालय के सीनियर प्रोफेसर और हम सबके आदर्श !

उनके जीवन में दो ही काम महत्वपूर्ण थे

एक विद्यार्थियों की समस्याओं को सुलझाना और दूसरा जो महत्वपूर्ण काम था

गौशाला जाकर गायों की देखभाल करना।

उन्होंने यही दिनचर्या बना रखी थी ।

विद्यार्थियों को किसी प्रकार की कोई भी परेशानी हो प्रोफेसर साहब कभी पीछे न हटते,

चाहे आर्थिक मदद हो या विषय की कठिनाई,

चाहे महाविद्यालय से छूटने के समय ही क्यों न हो,

अगर कोई छात्र आ गया ‘सर मुझे यह न्यूमेरिकल समझ नहीं आया’

तो तुरंत अपना हैलमेट साइड रख लग जाते थे उन्हें समझाने।

बेहद उदार चरित्र एवं दयालु प्रवृत्ति के हैं।

उनसे काफ़ी जूनियर हैं हम,,हमें भी महाविद्यालय कुछ मुश्किलें होती तो हम पहुँच जाते उन्हीं के पास,

वहां पहुँचते हो समस्या जैसे छूमंतर हो जाती ।

कुछ दिनों हम देख रहे थे कि सर कुछ परेशान से दिख रहे हैं

पर किसी से कुछ शेयर नहीं किया क्या बात थी ।

दो तीन दिन हो गए सर ने किसी से ठीक से बात नहीं की कुछ व्यस्त से दिख रहे हैं,

मुझसे रहा न गया, मैंने जाकर पूछ ही लिया,

“क्षमा चाहता हूँ सर आपके निजी जीवन में दखल तो नहीं देना चाहता था,

पर मैं देख रहा हूँ आप कुछ दिनों से परेशान से हैं इसलिए मुझसे रहा न गया,

क्या बात है सर?”

सर मुस्कुराये फिर बोले कोई बड़ी बात तो नहीं फिर भी बता देता हूँ शायद कोई हल निकले!

“जी सर बताईये”

सर ने बताया

“तुम्हें तो पता ही है मेरे जीवन के दो ही ध्येय हैं एक ये महाविद्यालय,

और दूसरा जो काम मुझे सबसे ज्यादा खुशी देता है,

गौशाला जाकर गायों की देखभाल करना,

उनके चारा पानी की व्यवस्था करना बस यही मेरी जिंदगी है ।

इसी चिंता लगा हूँ कि अब गायों के सालभर खाने के लिए भूसे का प्रबंध कैसे हो ?

क्योंकि गौशाला कोई एक दो गाय तो है नहीं ,सैकड़ों गाय हैं, मैं अपना पूरा वेतन भी दे दूँ तब भी कमी पड़ेगी ।

इसलिए थोड़ा परेशान हूँ और कुछ नहीं ।”

“बस इतनी सी बात और आपने मुझे बताया तक नहीं ,चलो देर सही पर अब एक भी गाय भूखों नहीं मरेगी ।”

“लेकिन सुनो तुम क्या करने वाले हो ?”

कुछ नहीं सर बस आप देखते जाइये हम सब मिलकर अभी समस्या का समाधान किये देते हैं ,

“पर कैसे?”

“सर मैं अभी इस मैसेज को व्हाट्सएप के महाविद्यालय ग्रुप पर शेयर कर देता हूँ

कुछ न कुछ मदद अवश्य मिलेगी।

और देखते ही देखते लगभग सभी ने अपना योगदान दिया

किसी ने पांच हजार,

किसी ने दो हजार किसी ने हजार ,पांच सौ करके लगभग पचास हजार तक की राशि एकत्रित हो गयी,

सभी ने मिलकर खुशी खुशी सर के हाथों में राशि को सौंपते कहा कि धन्य हम कि हमारा जीवन किसी काम आ सका।

इस पर सर अपनी आंखों में आँसू भरकर बोले, मैंने लोगों को अक्सर यह कहते सुना है कि

भलाई का तो अब जमाना ही न रहा ।

लेकिन आज आप लोगों द्वारा जो इंसानियत की मिसाल पेश की है उसे देखकर मैं गर्व से कह सकता हूँ कि

भलाई का जमाना अभी भी है।

Photo by Monthaye on Unsplash

शेयर करें
About संगीता सिंह 3 Articles
संगीता सिंह सहायक प्राध्यापक शासकीय महाविद्यालय श्योपुर
0 0 votes
लेख की रेटिंग
Subscribe
Notify of
guest

0 टिप्पणियां
Inline Feedbacks
View all comments