
अमिता जब भी किसी को भीख मांगती देखती तो उसका हृदय द्रवित हो उठता और वह उन्हें कुछ रुपये पैसे देकर उनकी मदद कर देती ।
इससे उसे बडा संतोष मिलता लेकिन उसकी इस आदत से उसके पति विनय अक्सर नाराज हो जाते ।
उनका तर्क होता की “तुम इन्हें इस तरह से भीख देकर उनकी भिक्षा की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही हो
और वह हमेशा विनय की बातों को अनसुना कर देती।
एक दिन वह बाजार से घर लौट रही थी तो रास्ते में उसे एक गूंगा व्यक्ति मिला जो हाथ में एक पर्ची पकड़े थे।
उसे लगा कोई राहगीर होगा जो उससे रास्ता पूछ रहा होगा ।
उसने पर्ची पढ़ी, उसमें लिखा था,
“मेरी छः माह की बच्ची बीमार है मुझे उसके ईलाज के लिए रुपयों की सख्त जरूरत है।
कृपया कुछ रुपये देकर मेरी मदद करे। भगवान तुम्हारा भला करेगा।”
उसने उस व्यक्ति के चेहरे को गौर से देखा, दुख और दीनता जैसे उसके चेहरे से टपक रही थी।
वह अपनी आदत के वशीभूत होकर उस व्यक्ति के चेहरे को देखकर द्रवित हो गई।
उसने अपने पर्स को टटोला और उसमे से 100 सौ रुपये का नोट निकाल उसे दे दिया।
वह व्यक्ति आँखों से कृतज्ञता व्यक्त करके आगे बढ़ गया।
इधर वह अपने आप को कोस रही थी। हाय ! मैं कितनी कंजूस हूँ।
सौ रुपये ही दिये उस बेचारे को ,इतने कम रुपयों मे उसकी बच्ची का ईलाज भला कैसे होगा ।
अपने विचारों में खोई अभी वह कुछ दूर ही आगे बढ़ी होगी कि दो बच्चे जिनमें एक लड़का और दूसरी लड़की थी, उसे देखकर हँस रहे थे
उनमें से लड़की उससे बोली
“हा हा हा आंटी उसने तुम्हें उल्लू बना दिया।
आंटी वह दारु के लिए ऐसा अक्सर करता है।”
बच्ची की बात सुनकर वह स्वयं को हतप्रभ व ठगा महसूस कर रही थी
और उसे अपने पति विनय की बात याद आ रही थी तुम इन्हें भीख देकर भिक्षा वृत्ति को बढ़ावा दे रही हो।
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