
हमेशा की तरह सड़क पर वाहनों की आवाजाही बहुत थी। छोटा-सा बच्चा अपनी छोटी सी साइकिल चला रहा था।
उसे बड़े होने का एहसास और गर्व महसूस हो रहा था।
सड़क पर गड्ढे के कारण अचानक बच्चा संतुलन खो बैठा। सामने से तेज गति से आ रही बाईक सवार ने भी ब्रेक लगा कर बाईक को रोकने की पूरी कोशिश की पर वह भी गिरते- गिरते बच्चे से टकरा गया।
तुरंत भीड जुट गई और बाइक सवार पर तो शामत आ गई। भीड़ में आवाज़ गूंजने लगी, मारो!मारो! एक ने कहा ,आजकल की युवा पीढ़ी को यदि वाहन मिल जाए तो उन्हें पर लग जाते है, वें आसमान से ही बात करते हैं। इन्ही की वजह से दुर्घटनाएं होती है।
दोनों को मामूली सी खरोंच ही आईं थीं, परंतु भीड़ से पुनः एक स्वर उठा पीटो! पीटो! और देखते ही देखते कई हाथ मारने को उतावले हो गए।
अचानक भीड़ चीरती एक महिला ने प्रवेश किया। छोटे बच्चें को अपने से चिपकाया और डांटते हुए बोली,
“कितनी बार छोटों को समझाते है कि रोड़ पर साइकिल न चलाएं पर आजकल छोटे बच्चें मानते ही नहीं है!”
भीड़ असमंजस में हो गई कि गलती किसकी है। पल भर में भीड़ तितर-बितर हो गई।
बाइक सवार ने कहा ,”सौरी आंटी । आप का बेटा..”
महिला ने बीच से ही कहा, “तुम दोनों कान खोल कर सुन लो। वाहन चलाना कोई हंसी मजाक नहीं है। अपनी अपनी गलतियां सुधारों।
और हां ! तुम दोनों मेरे बेटे नहीं हो पर मैं एक माँ हूँ…।