
जीजी क्यों ,झेल रही हो ,इतने सालों से ?तुम्हें गुस्सा नहीं आता ?
नई बहू ,,खीझ रही थी अपनी जेठानी पर ।
गुस्से और ,घिन से उबल रही थी ।।
“जी में आ रहा है खटिया उलट दूँ बुढ़ऊ की “
“नीतू धीरे बोल ,कोई सुन लेगा “
बेला , घबराकर नई नवेली देवरानी के सिर का पल्लू ढोड़ी तक खींच, उसे कर अंदर ले गई ।
“वो ताया जी हैं, ससुर जी के बड़े भाई। “
“विधुर हैं और निसंतान भी । इस घर के सबसे बड़े हैं,,सासूजी भी घूंघट लेती थीं ,मैंने और मझली ने भी आदत डाल ली और अब तुम्हें भी लेना होगा ।”
ताया जी ने किसी बहू को बिना घूंघट देख लिया तो समझो उसकी शामत ।
“वो सब ठीक है जीजी ,पर आशीर्वाद देने का ये कौन सा तरीका है ?? “
उसे अब तक अपनी पीठ पर काँटों सी चुभन हो रही थी ।
“छोड़ ना ,वो तो ऐसे ही हैं ,हम तो किसी से कह भी नहीं सकते ।”
घर में बहुओं को घूंघट में हटाने की आजादी नहीं थी ,पर तायाजी कच्छा पहने आँगन में बैठे रहते । कभी चाय का कप लेने के बहाने, कभी हुक्का पकड़ाते ,बहुओं के हाथों को छू ही लेते थे ।
नहाने के लिए गर्म पानी की बाल्टी भी बहू को ही रखनी होती, उनके बाथरूम तक। कभी दरवाजे में खड़े हो जाते ,कभी पास से रगड़ कर निकल जाते । अपमान का कड़वा घूँट पी कर रह जाती थी बहुएं । किसी से कहने में भय भी होता और शर्म भी आती ।
तायाजी सारा दिन बहुओं के काम में मीन मेख निकालते, खरी खोटी सुनाते रहते ।नज़र रखने के बहाने बार- बार रसोई की जाली वाली खिड़की से झाँकते रहते , जहाँ बिना घूंघट वो मगन हो काम करती रहतीं।
“तो क्या मर्यादा में रहने की सारी जिम्मेदारी हम बहुओं की है ।”
नीतू को बात बिल्कुल नहीं पच रही थी ,विद्रोह पनप रहा था अंदर ।
“जीजी सच कहती हूँ इनकी खटिया उलट दूंगी पीछे से जा कर ।”
“चुप कर पगली “बेला को हँसी आ गई, आँसू पोंछे और फिर काम में लग गई।
दो महीने बीत गए थे ,नई बहू के ब्याह को।तीनों बहुएं मिलजुल कर घर के काम करतीं। नीतू भी दोनो जिठानियों से घुलमिल गई।
काम करते, हँस बोल लेतीं और अपने सुख-दुख साझा कर लेतीं । धीरे धीरे दिनचर्या सामान्य होने लगी ।
अचानक ,घर में कुछ अजीब घटनाएँ होने लगी। कभी ताया जी के ऊपर गर्म चाय गिर जाती ,कभी हुक्के के अंगार पर हाथ चला जाता। परसों सुबह नहाने गए तो फिसल गए और कल शाम को तो गज़ब ही हो गया, ना जाने कैसे खटिया उलट गई।
ताया जी सहम कर कंबल ओढ़े सो रहे हैं,, कमरे से ही बाहर नहीं निकले हैं तब से ।