
पात्र परिचय
- बड़े भाई: रमेश,
- छोटा भाई: सुरेश,
- मझला: उमेश
- बहुएं: बड़ी अर्चना, अमिता , अंजलि
- बहन: राधिका अविवाहित
दृश्य: रमेश और उसकी पत्नी अर्चना बैठक में बैठे हैं।मां के निधन के बाद सोच रहे हैं कि किस तरह हिस्से बंटवारे की बात करें।
अर्चना:– आज मांजी की तेरहवीं हो गई। आप बंटवारे की कब बात छेड़ोगे ।
रमेश :- मौका मिल नहीं रहा क्या करूं?
अर्चना:- आज -कल में सभी रवाना हो जायेगें।
रमेश:- देखो । सभी का क्या प्रोग्राम है।
अर्चना:- हमेशा आप की लापरवाही के कारण मुझे नुकसान उठाना पड़ता है। कहीं हिस्सा हाथ से न निकल जाए।
(सुरेश, अमिता, उमेश अंजलि राधिका का प्रवेश)
रमेश :– तेरा क्या प्रोग्राम है?
सुरेश:- आज चला जाऊंगा रात की गाड़ी का रिजर्वेशन है
अर्चना:- मकान, प्रापर्टी का क्या करें?
सुरेश:– जैसा चल रहा वैसा ही चलने दे।
अर्चना:- आप की नौकरी अच्छी है पर हमें तो पैसों की सक्त जरूरत है?
सुरेश:-
“जैसा आप उचित समझे।
मैं कुछ मांगने का दावा नहीं कर सकता।
अमिता की मां से कभी नहीं बनी ।
मैंने कभी मां की सेवा नहीं की।
राधिका की ओर भी ध्यान नहीं दिया, उसके विवाह की भी जिम्मेदारी पूरी नहीं की ।
हमेशा हम अपना कर्तव्य राधिका पर डाल चले गए।
और मां ने भी केवल राधिका की ही जिम्मेदारी समझी।
कभी कभी सोचता हूं तो लगता है बहुत गलत हुआ है।
आज राधिका ३५ साल की हो गई।”
अमिता:– जिम्मेदारी ,कर्त्तव्य अलग है।प्रापर्टी में हिस्सेदारी अलग है।
सुरेश:– नहीं हमने जब सेवा नहीं की तो मेवा की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। मैं अपना हक छोड़ रहा हूं।
अमिता:– पर…..।
सुरेश:– “मैं तुमसे बहुत बार कह चुका हूं,
कि मां जिसके पास रहेगी सारी प्रापर्टी उसी होगी।
पर तुम तो हमेशा कहती थी ,ना मां चाहिए और न पैसा।
अब क्या हो गया?
अमिता:– पर आप तो इस घर के वारिस हो?
सुरेश:– मां की सेवा करने के लिए भी मैं वारिस था। तब तुम्हारा ज्ञान कहां गया था?
उमेश:– भैया, यह सब बाद में सोचेंगे। अभी तो आप सब खर्चे का हिसाब करिए ।
(एक लिस्ट दिखाते हुए)
मां का अंतिम संस्कार व पूजा पाठ का यह हिसाब है।
राधिका:- वह मुझे दे दीजिए। मां ने कहा था कि उनका सब कार्यक्रम उन्ही के पैसे से हो।
अंजलि:- (अपने पति उमेश से लिस्ट ले कर राधिका को लिस्ट देते हैं ) ये लीजिए दीदी।
छोटे छोटे खर्चे दिखाई नहीं देते पर हजारों में हो जाते है।
जब भी हम सब इकठ्ठा होते हैं हर बार हमारे ही पैसे खर्च हो जाते हैं।
उमेश:-और क्या कहा था मां ने?
राधिका:- छोड़ो सब बातें ! कहा तो बहुत कुछ था।
रमेश:- हमें भी तो मालूम हो?
राधिका:-
“आप सब के व्यवहार व रूखे पन से वह रोज अपनी लिस्ट में एक वाक्य जोड़ती थी।
चार दिन पूर्व कह रही थी कि
जो अभी तक न आए तो मेरे मरने की खबर किसी को नहीं देना…….!”
अंजलि:- उन्हें किसी से लगाव न था इसलिए वह ऐसा …….।
राधिका:- “(बीच में ही बात काटकर) काश ऐसा होता!
पर ममता जब सिसकारियां भरती है ना, तब यह आत्मा बोलती है ।
कितना तरसती थी, सब को जी भर देखने के लिए।
इंतजार ही करती रही।”
अर्चना:- अब आगे क्या किया जाए? आप ही बताइए?
राधिका:- मां ने वसीयत लिख रखी है मुझे भी नहीं मालूम थी पर तीन चार दिन पूर्व वकील साहब आए थे। मैंने उन्हें आज बुलाया है।
सभी एक साथ:-क्या?
राधिका:- हां वे आते होंगे।
(वकील का आगमन, सभी नमस्कार कर बैठाते हैं। वकील साहब वसीयत निकाल पढ़ते हैं।)
वकील साहब:-
“मैं श्रीमती शारदा देवी पूरे होश हवास में वसीयत लिख रही हूँ कि मेरे ज़ायदाद के हिस्से बराबर सभी बच्चों में बांट दिया जाएं।
राधिका ने मेरी बहुत सेवा की उसे मैं अपने गहने और सारी बैंक के बही खाते उसके नाम कर रही हूं।
विशेष नोट:-
मां को पालने के लिए भेद भावना का एहसास मैंने सहा है
पर मां के झोली में हमेशा बच्चों के लिए बराबर स्नेह रहता है।
इसलिए बराबर हिस्सों में बंटवारा चाहती हूं।”
(राधिका ,व वकील सभी को देख रहें थे। )
और सभी:-(एक साथ )
मां तुम धन्य हो!
(सभी की आंखें शर्म से झुक जाती है।)
(पर्दा गिरता है)
Photo by Álvaro Serrano on Unsplash
माँ अपने हृदय के टुकड़े को अपना पूरा हृदय सौंप कर भी चिंतातुर रहती हैं और उसके बच्चे भी साक्षात देवी के रूप में माँ की पूजा करते हैं।
कदाचित कुछ ही बच्चे इस सुख का सौभाग्य प्राप्त नहीं कर सकते , तभी तो किस्से कहानी नाटक और समाचार बनते हैं , सपूत बच्चों की संख्या अधिक है इसलिये उनके किस्से बाज़ार में नहीं आते । यह भारतीय सँस्कार है नमन है हमारी संस्कृति को 🙏
बहुत सुंदर लेखन
Mata Pita ka aashirwaad hi sarvopari hota hai. Paise aapko kuch samay tak bhotik Sukh deta hai parantu asshirwad aapko mansik k sath Sharirik sukh bhi pradan karat hai. Atti sunder Lekhan !
अच्छी कहानी