
सुहासिनी को जब से पता चला है कि उसे साहित्य जगत का सर्वोच्च सम्मान मिलने वाला है ।
तब से ही वह खुशी के मारे फूली न समा रही थी आखिर दोगुनी खुशी जो मिली है एक तो उसका नाम, दूसरा उसके ‘राइट नंबर’ का नाम भी था उस सूची में था।
रह रह कर उसे वह क्षण याद आ रहा है जिस पल उसके ‘राइट नम्बर’ का फोन आया ।
जब वह वक्त की स्याही से भविष्य के कुछ सुनहरे सपने बुनती और अपनी कलम से पन्नों पर उकेर देती , पर मन में कुछ कमी सी हरदम बनी रहती।
वह सुहासिनी के लेखन का शुरुआती दौर था।
सुहासिनी चाहती थी किसी नामचीन लेखक का मार्गदर्शन मिले।मगर बहुत कोशिश करने के बाद भी किसी का अपेक्षित सहयोग न मिला।
सुहासिनी ने लिखना निरंतर जारी रखा, छोटी मोटी पत्रिकाओं एवं न्यूज़ पेपर में उसके लेख ,कविताएं, और कहानियाँ छप जाया करती थी ।
एक दिन मोबाइल की घंटी बजती है सुहासिनी ने फोन उठाया,
“हेलो, हेलो कौन ?” सुहासिनी पूछती है,
“हैलो मैं कुमुद बोल रही हूँ”,अपने परिचय के साथ कुमुद बोली , “आपकी की कविता मुझे बहुत पसंद आई सोचा आपको बधाई दूँ।”
कुमुद के नाम से पहले परिचित तो थी सुहासिनी,पर कभी बात नहीं हुई थी
“अरे! नहीं कुमुद जी, मुझमें आप सी बात कहाँ?” सुहासिनी ने उत्तर दिया ,
“आपकी लिखी हुई रचनाएँ भी मैंने पढ़ी हैं ,सच बहुत अच्छा लिखती हो आप, कुमुद जी।सीधे हृदय को छू जाता है आपका लिखा हुआ हर शब्द!”
इसी तरह फोन पर रोज एक दूसरे के लेखन की तारीफें होने लगीं।
बगैर मिले ,बगैर एक दूसरे को देखे,घंटो फ़ोन पर बातें होती थी |
जब भी कोई कुछ लिखता तो एक दूसरे की राय लिए बिना न छपता।
दोनों एक ही नाव की सवार थीं, इसलिए दोस्ती भी बहुत गहरी हुई।
“अक्सर लोगों को यह कहते सुना था कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है” |
पर इन दोनों की दोस्ती ने यह कहावत गलत साबित कर दी ।
और कामयाबी उनके क़दम चूम रही है,,,
“अरे…” सुहासिनी ने अपना माथा ठोका और कहा उससे तो पूछ लिया जाए जो मेरा हम राज है उसके क्या हाल हैं?
ट्रिन, ट्रिन….हेलो मेरे ‘राइट नम्बर’ ढेरों बधाइयाँ इस सम्मान के लिए…
उधर से भी आवाज आई तुम्हें भी लख लख बधाइयाँ सखी
आगे..
सुहासिनी सुनो न मैंने एक कहानी लिखी है पढ़ के बताना ठीक तो है न…
हाँ हाँ जरूर..मैंने भी एक कविता लिखी है तुम्हें भेजूगी बताना कैसी लगी…
गपशप गपशप…..
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